बौनों का गाँव

असम में एक अनोखा गाँव है जहाँ साढ़े तीन फीट से कम ऊंचाई के लोग रहते हैं!ये गाँव भारत भूटान बॉडर से कुछ ही दूरी पर बसा है,इस गाँव की आबादी 70 लोगो की है, कुछ लोग यहाँ अपने मर्ज़ी से आये और कुछ लोगों के परिवार वालो ने यहाँ लाकर छोड़ दिया !
असम के लोग इसे बौनों का गाँव कहते हैं !मगर जो गाँव वाले है उन्होंने ने इस गाँव का नाम अमार गॉव रखा है ! अमार का मतलब हमारा यानी हमारा गाँव !
आम तौर पर हमारा समाज नाटे क़द के लोगो का मज़ाक़ बनाता है! इसी मज़ाक़ की वजह से पवित्र राभा ने सोचा क्यो न नाटे क़द के लोग एक जगह रहे जिससे ये मज़ाक़ के पात्र न बन सके !
पवित्र राभा ने इसी सोच के साथ इस गाँव को बसाना शरू किया और असम के कोने कोने से नाटे क़द के लोगो का लाना कर बसाना शरू किया और तभी से इस गाँव का नाम आमार गांव रखा ,पवित्र ही इस गाँव के राजा हैं जो ‘नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा’ के कलाकार हैं|
अमार गांव के लोगों का कद भले ही छोटा हो लेकिन इन कि सोच और इरादे पहाड़ जितने ऊंचे हैं। यहां के ये नाटे क़द के लोग दिन में खेतीबाड़ी करते हैं और शाम होते ही रंगमंच के कलाकार के तौर पर नजर आने लगते हैं और शुरू हो जाता है नाटक का दौर।
शुरुआत में स्थानीय लोगों ने राभा और इन सभी लोगों का मजाक उड़ाया। किसी ने बौनों का देश कहा, तो किसी ने बौनों की मंडली, लेकिन राभा ने इन लोगों का हौसला बढ़ाया और उन्हें मंझा हुआ कलाकार बनाया।


ग़ालिब मुसाफिर