बात सिर्फ दस्तखत की नहीं है



मेट्रिक तक वैसे हस्ताक्षर का कोई विशेष महत्व नहीं होता था लेकिन बोर्ड के परीक्षा फार्म आदि में हस्ताक्षर करने पड़ते थे l उस समय मैं अंग्रेजी में हस्ताक्षर करता था l दूसरे लोगों के हस्ताक्षर देख देखकर अपने हस्ताक्षर को कलात्मक और अबूझ बनाने का प्रयास करता था l गोपाल के G के साथ राठी का R इस स्टाइल में लिखा जाता था कि जिसको हमारे अलावा कोई नहीं जान सकता था l फिर कुछ दिन हस्ताक्षर की यह स्टाइल बनाई की उसमें Rathi तो समझ में आता था लेकिन गोपाल का G छिप जाता था l कुल मिलाकर यह सब कसरत रोमन लिपि अर्थात अंग्रेजी में चलती रही l



कॉलेज में जब आये तो डॉ.लोहिया के अंग्रेजी हटाओ सम्बन्धी भाषण और वेदप्रताप वैदिक की पुस्तिका अंग्रेजी हटाओ क्यों और कैसे ? पढ़ने को मिले l भाषा की राजनीति जन भाषा और सामंती भाषा की अवधारणा समझ में आई l यह भी समझ में आया कि अंग्रेजी जैसी समृद्ध भाषा की भूमिका भारत के सन्दर्भ में सामंती है l एक भाषा के रूप में अंग्रेजी भारत मे सम्मान पूर्वक रहे इससे किसी को एतराज नहीं होना चाहिए लेकिन उसकी जगह सिर्फ लाइब्रेरी और यूनिवर्सिटी है l प्राथमिक - माध्यमिक शिक्षा , व्यवसाय उद्योग धंधे ,अदालती कार्यवाही आदि सभी सरकारी कामकाज हिंदी या जनता की भाषा में होने चाहिए l
हस्ताक्षर शायद वह पहला लिखित प्रमाण है जिसके माध्यम से हम अपना परिचय देते हैं l जिस हस्ताक्षर से हमारी पहचान हो उसे अंग्रेजी में क्यों होना चाहिये ? यह सवाल बार बार मन मे उठता था l यह द्वंद बहुत दिनों तक चलता रहा इस बीच बैंक में सेविंग बैंक खाता खोलने की बारी आई तो मैंने पहली बार अपने हस्ताक्षर हिंदी में किये l मैं अपने हिंदी हस्ताक्षर पर इतना फिदा हुआ कि बाद में सभी जगह इसे उपयोग किया l फिर तो अंग्रेजी के प्रपत्र और फार्म में भी हस्ताक्षर हिंदी में ही करता था l
भाषा सिर्फ भाषा नहीं होती है वह एक सतत प्रवाह है जिसमे बहते हुए हमने यहां तक की यात्रा तय की है l हर भाषा एक सांस्कृतिक परिवेश में विकसित होती है l अपनी भाषा से अलगाव हमें अपनी विरासत और संस्कृति से दूर कर देता है l
पुस्तक मेले में हमारे एक मित्र अपने बच्चों के लिए इंग्लिश स्टोरी बुक खोज रहे थे l वहां बहुत पब्लिशर्स आये थे लेकिन वे फिर भी परेशान थे l बाद में उन्होंने बताया कि हम ऐसी स्टोरी बुक की तलाश में है जिनका सांस्कृतिक परिवेश भारतीय हो l अधिकांश इंग्लिश स्टोरी का बैकग्राउंड यूरोपीय होता है l उस समय हमारी यह धारणा पुख्ता हुई कि भाषा महज़ भाषा नहीं एक संस्कृति है l



@ गोपाल राठी