आदिवासी ना होतें तो आज और कल ना होतें, आदिवासी ही हैं जिन्होंने इस दुनिया को दुनिया बनाया है !



40,000 वर्ष पहले भारत भूमि पर आदिवासी समाज ने पाषाण युग की शुरवात की. पत्थरों से औजार उपकरण बनाकर उन्होंने मानव विकास को गति प्रदान की. पाषाण युग का प्रमाण किसी मध्यकाल के धर्म ग्रंथ में नही मिलेगा !


प्रमाण, मध्य प्रदेश में भीमभेटका के विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं में अनेक गुफाओं में 30,000 हज़ार वर्ष पहले बनाए चित्र आकृति से मिल जाता है. भारत के पहले आदिवासी मानव समूह ने चित्र में खुद को शिकार करते हुए दर्शाया, चित्र में अनेक जानवरों का चित्र है जैसे हाथी, हिरण, भैंस. लेकिन गाय का चित्र नही है !



आदिवासियों ने भारत को भोजन संस्कृति दी... कृषि ज्ञान दिया... 5000 जड़ी बूटी, पेड़ पौधों को खोजकर, 10,000 साल पहले होड़ो पौथी चिकित्सा विज्ञान पद्धति का आविष्कार किया... धनुष बाण और अनेक औजार उपकरण का आविष्कार किया... आदिवासी ही इस भूमि के पहले किसान... पशुपालक और वैज्ञानिक है !


आदिवासियों को उनके कार्य का श्रेय नही मिला. भारत में 12% आबादी आदिवासी समाज की है. जो गरीबी, पलायन, जबरन विस्थापन झेल रहे हैं. जिन्होंने भारत देश के सभ्यता की नींव रखी आज वह ठेका मजदूर और घरेलू नौकर बनने को मजबूर हैं !


आदिवासी अपनी जान पर खेल कर जंगल पेड़ पौधे और पर्यावरण की रक्षा कर रहे हैं. जंगल पेड़ काट डाले जायेंगे तो इंसान भी जिंदा नही बचेगा. बरसात के बिना फसल नही होगी, प्रलाय आ जाएगा !


इस संसार के रचेता आदिवासी समाज को अपना शीर्ष झुकाकर कोटि कोटि प्रणाम करता हूँ ! 


रामअयोध्या सिंह जी के वाल से साभार.