आदिवासी महिला कर्मचारी के झन्नाटेदार थप्पड़ की गूंज वन मंत्री के कानों तक पहुंची
वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी दे रहे हैं रेंजर को संरक्षण

     जांच के नाम पर की जा रही लीपापोती

 छिंदवाड़ा -पूर्व वनमंडल छिंदवाड़ा के वन परिक्षेत्र कार्यालय छिंदवाड़ा में पदस्थ आदिवासी महिला कर्मचारी के साथ कार्यालय में रेंजर सुरेंद्र सिंह राजपूत द्वारा किए गए अश्लील व्यवहार एवं छेड़खानी की वारदात के बाद महिला कर्मचारी द्वारा रेंजर के गाल पर मारे गए झन्नाटेदार  थप्पड़ की गूंज वन विभाग के प्रदेश मुख्यालय के साथ ही वन मंत्री के कानों तक भी पहुंची है रेंज ऑफिसर को बचाने के लिए जी जान से जुड़े सीसीएफ कोरी एवं वन मंडल अधिकारी अखिल बंसल द्वारा फौरी तौर पर दिखावे के नाम पर एक परिपत्र जारी कर यह बताने का प्रयास किया गया है कि पीड़ित महिला के द्वारा की गई शिकायत पर समिति जांच करेगी पहले तो वन मंडल अधिकारी बंसल यह मानने को ही तैयार नहीं थे कि उनके  वन मंडल के अंतर्गत किसी महिला कर्मचारी के साथ इस तरह का अश्लील व्यवहार उनके चहेते रेंजर द्वारा किया गया है



photo-रेंजर सुरेंद्र सिंह राजपूत

 

पत्रकारों को बंसल गुमराह करते रहे कि उन्हें शिकायत प्राप्त नहीं हुई है जबकि वास्तविकता यह है कि घटना के पश्चात महिला ने इस आशय की शिकायत स्वयं जाकर डीएफओ बंसल को की थी साथ ही कार्रवाई करने की मांग भी की थी और उन्होंने महिला की बात को नजरअंदाज करने का प्रयास किया था तो महिला कर्मचारी ने अत्यंत दुखी होकर डीएफओ बंसल को यह कहा था कि यदि मेरे साथ न्याय नहीं हुआ तो मैं आपके बंगले के सामने अपने दोनों बच्चों को साथ में लेकर   न्याय पाने के लिए बैठ जाऊंगी इस बात को डीएफओ बंसल आखिर क्यों छुपा रहे हैं? इस बात का भी खुलासा होना चाहिए... वहीं सी सी एफ़ कोरी भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते क्योंकि महिला कर्मचारी ने घटना के संबंध में दो दो बार फोन पर श्री कोरी से संपर्क कर इस मामले में हस्तक्षेप करने एवं कार्यवाही करने के निर्देश देने की गुहार लगाई थी परंतु श्री कोरी  ने अपने पदीय कर्तव्य को ताक पर रखते हुए एक आदिवासी महिला के साथ हुए अश्लील व्यवहार एवं  हिंसा जैसे गंभीर मामले को दबाने का पूरा प्रयास किया यह दोनों उच्च अधिकारी पत्रकारों के सवालों से बचते रहे और सिर्फ यह कहते रहे कि उन्हें कलेक्टर महोदय के माध्यम से इस आशय की जानकारी प्राप्त हुई है जबकि महिला ने स्वयं उपस्थित होकर डीएफओ  एवं सी सी एफ़ के संज्ञान में इस मामले को लाया था

जाहिर सी बात है कि पूर्व वन मंडल के अंतर्गत आने वाले समस्त कार्यालयों में यदि कोई घटना खासकर महिला से संबंधित हो और शिकायत के बाद अधिकारी उसका संज्ञान ना लें इस बात को आसानी से समझा जा सकता है कि वरिष्ठ अधिकारियों की मंशा क्या है ?सवाल तो यह भी उठाए जा रहे हैं कि लगातार समाचार पत्रों में समाचारों के प्रकाशन के बाद भी सी सी  एफ़  ने घटना के आरोपी रेंजर के विरुद्ध कोई भी कार्रवाई नहीं करते हुए खामोशी क्यों बरकरार रखी थी जबकि प्रथम दृष्टया इस मामले में आरोपी रेंजर को वन परीक्षेत्र कार्यालय से तत्काल हटा कर मुख्यालय में अटैच करना था तथा प्रकरण की गंभीरता से जांच करने के आदेश देने के साथ ही प्राथमिकी दर्ज कराना था परंतु ऐसा न करते हुए एक प्रकार से इस अधिकारी ने अपने पदीय कर्तव्यों से पल्ला झाड़ लिया जब शिकायत विभाग के उच्च अधिकारियों और वन मंत्री के कानों तक पहुंची तब आनन-फानन में कार्यवाही के नाम पर मात्र खानापूर्ति करते हुए डी एफ ओ बंसल ने एक पत्र जारी किया जिसमें प्रकरण की जांच संबंधित समिति से कराए जाने की बात का उल्लेख किया गया है और इस पत्र में कहीं पर भी उनके पद नाम और कार्यालय की सील अथवा नाम का उल्लेख नहीं है यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस पत्र में यह भी कहा गया है कि वन परिक्षेत्र अधिकारी सुरेंद्र सिंह राजपूत का प्रभाव चौरई के वन परिक्षेत्र अधिकारी सनोडिया को देते हुए रेंजर सुरेंद्र सिंह राजपूत का अर्जित अवकाश 15 दिन के लिए स्वीकृत किया गया है आखिर रेंजर को 15 दिन का अर्जित अवकाश स्वीकृत करने की इतनी जल्दी क्या थी? यह भी एक विचारणीय प्रश्न है सरकारी सूत्रों के हवाले से शासकीय कर्मचारियों की सेवा शर्तें अधिनियम के अंतर्गत यदि कोई कर्मचारी अर्जित अवकाश हेतु आवेदन लेता है  तो उसे 21 दिन पूर्व आवेदन देना होता है और उसके बाद उसका अर्जित अवकाश का  आवेदन पत्र   स्वीकृत किया जाता है रेंजर सुरेंद्र  राजपूत के मामले में अर्जित अवकाश स्वीकृत करने के संबंध में जो जल्दबाजी दिखाई गई है




         जारी किया गया विभागीय पत्र  कहीं पर भी  पद नाम और कार्यालय की सील अथवा नाम का उल्लेख नहीं है

 

विभागीय सूत्रों का कहना है कि यह पूरा मामला एक पूर्व नियोजित योजना के तहत अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया है ताकि रेंजर राजपूत को जांच के दायरे से बाहर रखा जाए और जांच को प्रभावित करने का उसे पूरा मौका दिया जाए अर्जित अवकाश स्वीकृत किए जाने की कार्यप्रणाली भी इन अधिकारियों की मंशा पर सवालिया निशान लगाती है कि आखिर ऐसी कौन सी जल्दी थी की अर्जित अवकाश के आवेदन को तत्काल स्वीकृत कर घटित घटना  का रुख मोड़ दिया जाए यहां यह भी उल्लेखनीय है कि हाल ही में सिवनी जिले के वन परीक्षेत्र अधिकारी के के तिवारी द्वारा कर्तव्य के निर्वहन में लापरवाही बरतने के आरोप में सीसीएफ  ने उन्हें 24 घण्टे में तत्काल सस्पेंड कर दिया है वही छिंदवाड़ा की इस गंभीर घटना में श्री कोरी द्वारा  कोई भी कार्यवाही नहीं करना आश्चर्यचकित करता है एक आदिवासी महिला कर्मचारी के साथ घटित हुए गंभीर घटना क्रम में कार्यवाही नहीं होना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि विभागीय तौर पर दोनों अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बचते हुए दिखावे की कार्रवाई कर रहे हैं और आरोपी रेंजर को अभय दान देने एवं जांच की कार्यवाही को गोलमोल करने का युद्ध स्तर पर प्रयास जारी है.....