#नयी_शिक्षानीति:

              अब तक के हासिल पर स्याही फेरने और कुछ की कमाई का माध्यम बनाने की साजिशं

🔴 केंद्र की भाजपा सरकार बहुत जल्दी में है। वह तेजी के साथ देश के सारे जनतांत्रिक मूल्यों, संस्थाओं, विचारों को नष्ट करने और जनता में डर, हताशा और एक ही नेता के प्रति भक्ति पैदा करने और उस अंधभक्ति को बनाये रखने का काम तेजी के साथ कर रही है। शिक्षा नीति और शिक्षण संस्थाओं को बदलने के लिये आर एस एस निर्देशित भाजपा बहुत दिनों से प्रयत्नशील थी। अब कोरोना काल में आपदा को अवसर में बदलने की अपनी घोषणा के तहत यह काम भी सरकार ने कर लिया है। कोठारी कमिशन की रिपोर्ट के आधार पर बनी इस नीति पर जनता में से कोई सवाल न कर दे या विरोध न कर दे इसलिये इसे जनता के लिये उपलब्ध किये बगैर ही एक मंत्री मंडल की बैठक में स्वीकृत कराकर लागू करने की भी घोषणा कर दी गयी है।
🔴 शिक्षा और उसकी नीति किसी भी देश की एक महत्वपूर्ण नीति होती है। और जनतांत्रिक देश में यह केवल शासक पार्टी की नीति नहीं होती बल्कि संसद और विधानसभाओं में पूरी बहस के बाद स्वीकृत और मान्य नीति होती है जो देश के भविष्य के नागरिकों को बनाने के साथ साथ जनतंत्र संविधान और वैज्ञानिक चेतना को मजबूत करने के उद्देश्य को भी पूरा करती है।
🔴 अभी तक लागू शिक्षा नीति में लाख कमियाँ रहीं हों लेकिन वह बच्चों,युवाओं और शिक्षकों के जनतांत्रिक अधिकारों पर इतना बड़ा कुठाराघात करने वाली नहीं थी। वैज्ञानिक चेतना को विकसित करने में भी कमोबेश वह सक्षम थी। इसी नीति के तहत हमारे देश में स्कूली शिक्षा मुख्य रूप से सरकारी हाथों में थी और विश्वविद्यालय भी सरकारी हाथों में थे। इसी की बदौलत ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का प्रसार हुआ था। आदिवासी और दलित बच्चे और लड़कियों को शिक्षा नसीब हुयी थी।
लेकिन आर एस एस हमेशा से ही इस शिक्षा प्रणाली के खिलाफ रहा था। इसीलिये उसने सरस्वती शिशु मंदिर जैसे स्कूल पूरे देश में शिक्षा भारती के माध्यम से खडे किये जिनमें सांप्रदायिक सोच, गैर वैज्ञानिकता और परंपराओं की झूठी शान को बच्चों में भरा जाता है।
🔴 इसीलिये संघ हमेशा से ही जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे विश्वविद्यालयों को नापंसद करता है। शिक्षा नीति का ड्राफ्ट जो लफ्फाजी भरे वाक्यों और मुहावरों से भरा हुआ है बातें तो बहुत करता है लेकिन मूल रूप में शिक्षा प्रणाली को ठीक, सार्वभौमिक और उपयुक्त करने के लिये जरूरी तीन मुख्य बातों पर चुप रहता है। पहला सरकारी शिक्षा व्यवस्था को पहली से लेकर उच्च शिक्षा तक सुदृढ करना यानि शिक्षकों की व्यवस्था, उनके वेतन, उनके प्रशिक्षण के साथ साथ बच्चों को स्कूल तक लाने और उनकी योग्यता के अनुसार शिक्षा प्राप्त करने के अवसर होने की व्यवस्था करना, दूसरा स्कूलों में आवश्यक सभी प्रकार के संसाधनों की व्यवस्था और तीसरा इस देश में सबसे अधिक निरक्षरता समाज के जिन हिस्सों में है यानि दलितों, आदिवासियों और लड़कियों को अधिक से अधिक शिक्षा के करीब लाने की व्यवस्था करने के बारे में यह ड्राफ्ट चुप है। ड्राफ्ट अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य देश के बजट का करीब 6 प्रतिशत हिस्सा शिक्षा पर खर्च करने के मुद्दे पर भी चुप है। इस ड्राफ्ट की पूरी लफ्फाजी का एक ही अर्थ है शिक्षा का निजीकरण करना। पहली से लेकर उच्च शिक्षा तक पूरी शिक्षा व्यवस्था निजी हाथों में सौंपने की यह तैयारी है। यह नीति देश के फेडरल या संघीय ढांचे के अनुसार बनी पूर्व की शिक्षा प्रणाली को खत्म करके अति केंद्रित शिक्षा व्यवस्था लागू करने की ओर उठाया गया कदम है।
🔴 इस प्रस्तावित नीति पर कई लेख लिखे गये हैं इनमें से एक लेख दिल्ली में ही अध्यापन का काम कर रहे श्री आलोक मिश्र का है जिसमें उन्होंने इस ड्राफ्ट का विश्लेषण किया है। श्री मिश्र ने शिक्षा नीति में भाषा, क्षेत्र आदि के संबंध में अपनायी जाने वाली नीति का प्रावधान करने वाले केंद्रीकृत तरीकों की आलोचना की है। इस देश में जहां पर उत्तर दक्षिण पूर्व और पश्चिम में भाषा और क्षेत्र के अलावा जीवन के अन्य तौर तरीकों में भारी अंतर हो वहां पर इस तरह की शिक्षा नीति समाज में विघटन लायेगी। इसके अलावा इस ड्राफ्ट में धर्मनिरपेक्षता,संवैधानिकता और जनतांत्रिक सोच शब्दों को जानबूझ कर टाला गया है।
🔴 जनवादी महिला समिति की दृष्टि से इस नीति का सबसे खतरनाक पहलू लड़कियों को शिक्षा से अलग करने की छुपी हुई मंशा है। या फिर उन्हें होम साइंस/गृह विज्ञान जैसे विषयों से ही बांध कर रखने की साजिश है। इतनी महत्वपूर्ण नीति में शिक्षा को निजी हाथों में सौंपने का खुला प्रस्ताव है जो किसी सरकार ने पहली बार लाया है। यह एक गरीब देश की अधिकतर जनता के हितों के खिलाफ है। और स्पष्ट रूप से जहां पर लड़कियों की शिक्षा आम परिवार के लिये प्राथमिकता में नहीं होती है और गांव में स्कूल न होने या फिर सरकारी स्कूल न होने पर होने वाले ड्राप आउट बच्चों में लड़कियों की संख्या अधिक होती है, वहां पर जब स्कूली शिक्षा भी निजी हाथों में चली जायेगी तब लड़कियां अपने आप ही स्कूलों से बाहर हो जायेंगी।
🔴 इसके अलावा जो एक और खतरनाक प्रस्ताव है वह है तीन साल के बच्चों को भी स्कूल में दाखिले को कानूनी बनाने का प्रस्ताव। इस देश में आंगनबाड़ी में छह साल तक के बच्चे जाते है। जहां पर उन्हें पोषण आहार दिया जाता है। निजी स्कूलों की मोहल्लों,बस्तियों और गांवों में दादागिरी और उनके संचालकों की दबंगाई के चलते परिवार अपने बच्चों को तीन साल के होते ही पास के निजी स्कूलों मे भेजने लगते हैं और इस प्रकार आंगनबाड़ी केंद्र सूने रहते हैं। आंगनबाड़ी कर्मियों के खिलाफ कार्यवाही करने में ये सूने आंगनबाड़ी केंद्र भी एक कारण होते है जिनके लिये आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या सहायिका दोषी नहीं होती हैं। लेकिन अब इस तीन साल से स्कूल जाने को कानूनी बनाकर सरकार एक तीर से दो निशाने साध रही है। एक निजी स्कूल संचालकों का फायदा और दूसरा आगनबाड़ी केंद्रों को धीरे धीरे बंद करने की ओर कदम। तीन साल की उम्र में स्कूल भेजने का यह प्रस्ताव अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तय स्कूल भेजने की न्यूनतम उम्र पांच साल के भी खिलाफ जाता है।
🔴 इस शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालयों को इस देश में आने की इजाजत दी गयी है, यू जी सी को खत्म करने की योजना है, सारे विश्वविद्यालयों को धीरे धीरे स्वायत्तशासी बनाकर शिक्षकों, छात्रों के जनतांत्रिक अधिकारों पर हमला करने के साथ साथ मनमानी फीस वसूली और मनमाना वेतन देने के लिये उस संस्थान के मालिक स्वतंत्र होंगे। इसके अलावा संस्कृत भाषा पर जोर देकर देश की तमाम भाषाओं का जिक्र करते हुए उर्दू का जिक्र न करना सीधे सीधे सांप्रदायिक सोच को दिखाता है। इस देश की एक बड़ी आबादी बोलती है लिखती है। सबसे बड़ी बात यह है कि उर्दू हमारे ही देश में जन्मीं हुई भाषा है।
🔴 भाजपा और उसके पीछे आरएसएस का शिक्षा नीति को बदलने का यह कदम देश में मनुस्मृति को लागू करने की ओर उठा हुआ एक बड़ा कदम साबित होगा।
source-#लोकजतन 


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