किसान सघंर्ष समिति ने अनुविभागीय अधिकारी मुलतापी को ज्ञापन सौंपा

05 सितम्बर 2020 को राष्ट्रीय स्तर पर 500 से अधिक नारीवादी संगठनों द्वारा, 28 राज्य के एल.जी.बी.टी.क्यू.ए समुदायों और मानवाधिकार समूहों ने भारतीय संविधान और उसके मूल्यों की रक्षा के लिए ‘‘अगर हम उठे नही तो’’ अभियान चलाया जा रहा है। अभियान का उद्देश्य भारत के लोगों के संवैधानिक अधिकारों को खत्म किये जाने वालों के खिलाफ एकजुट होना है। कोरोना महामारी के दौरान महिलाओं के साथ घरेलु हिंसा के प्रकरण बहुत अधिक सामने आये हैं। कामकाजी महिलाओं पर घर में रहकर आॅफिस के काम करने के परिणाम स्वरूप महिलाओं पर घर और बाहर के काम का दबाव बहुत अधिक बढ़ गया है।
घर के काम करने के पश्चात् जब महिला आॅफिस में काम करने पहुँचती है तो अगर उसके साथ कार्यस्थल पर यौन शोषण होता है तो वह मानसिक तौर पर टूट जाती है, परिणाम स्वरूप उसके कार्य करने की क्षमता पर फर्क पड़ता है जो कि एक राष्ट्रीय हानि है। कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 बनाया गया है। यह अधिनियम, 09 दिसम्बर 2013 से प्रभाव में आ चुका है, किन्तु इस अधिनियम के तहत सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यालयों में कमेटियों का गठन नही किया गया है। इस कानून के तहत कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध ठहराया है। ऐसे सभी संगठन या संस्थान जिसमें 10 से अधिक कर्मचारी कार्यरत है, उसमें आंतरिक शिकायत समिति गठित करना अनिवार्य है। कानून बनने के पश्चात् भी प्रदेश के सरकारी तथा गैर सरकारी कार्यालयों ,फैक्ट्री, स्कूल, अस्पताल में इस तरीके की कमेटी गठन नही की गई है।
बैतूल जिले में लगातार इस तरह की घटनाएं मीडिया के माध्यम से प्रकाश में आती है लेकिन इस यौन प्रताड़ना के मुद्दे को उठाने वाली महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाता है। इसलिए यह आवश्यक है कि बैतूल जिले में कमेटी बनाई जाए तथा कमेटियों के संबंध में जानकारी मीडिया के माध्यम से प्रसारित प्रसारित की जाए। हर 3 महीने में एक बार जिले के स्तर पर इन कमेटियों द्वारा प्राप्त शिकायतों पर की गई कार्यवाही आम लोगों तक पंहुचाई जाए।
हम यह उल्लेख करना चाहते हैं कि डॉ सुनीलम ने विधायक रहते हुए कमेटियां गठित करने तथा कमेटियों को प्राप्त हुई शिकायतों पर कार्यवाही के संबंध में बार-बार प्रश्न पूछे जिसके चलते प्रदेश में कुछ हलचल जरूर हुई परंतु प्रशासनिक अमले में पुरुषों का वर्चस्व होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय की मंशा के मुताबिक प्रदेश में संतोषजनक कार्य नहीं हो सका तथा यह ज्ञापन पत्र इस आशय से भेजा जा रहा है कि आपके द्वारा व्यक्तिगत रुचि लेकर कार्यवाही की जाएगी।
हम आप से आशा करते है कि प्रदेश के प्रत्येक शासकीय तथा गैर शासकीय आॅफिस, स्कूल, अस्पताल, तथा फैक्ट्री में यौन हिंसा रोकने के लिए आंतरिक कमेटी गठित करने तथा कमेटी में 50 प्रतिशत महिलाऐं एवं कमेटी की अध्यक्ष महिला जो उस कार्यालय में कार्यरत न हो को नियुक्त करने का आदेश अवश्य देंगे। प्राईवेट बैंकों में लगभग 30 प्रतिशत महिलाऐं कार्यरत है और उन बैंकों में यौन उत्पीड़न रोकने के लिए आंतरिक कमेटी गठित नही की गई है। यौन उत्पीड़न की घटनाऐं प्रदेश में ना हो इस कारण आपको किसान संघर्ष समिति द्वारा ज्ञापन सौंपा जा रहा है।
मध्यप्रदेश के प्रत्येक जिले में कार्यरत शासकीय, अशासकीय, संगठित, असंगठित, फैक्ट्री, कार्यालय, अस्पताल, स्कूल, काॅलेज, निवासरत काॅलोनियाँ जिसमें घरेलु कार्य करने हेतु महिलाऐं काम करती है, में कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 के अनुसार आंतरिक कमेटी का गठन किया जाए।
अतः आप से अनुरोध है कि ज्ञापन में दी गई मांगों को लेकर कार्य स्थल पर यौन हिंसा रोकने के लिए आंतरिक कमेटी गठित करने के निर्देश जारी करें ताकि कार्यस्थल पर महिलाऐं सम्मानजनक तरीके के काम कर सकें।


                                                             -ज्ञापन पत्र-


प्रति,
माननीय शिवराज सिंह चौहान
मुख्यमंत्री, मध्यप्रदेश शासन, भोपाल
माध्यम से:- अनुविभागीय अधिकारी,मुलताई
विषय:- सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम 2013 के अन्तर्गत सम्पूर्ण प्रदेश के शासकीय तथा गैर शासकीय कार्यालय में आंतरिक कमेटी गठित करने, घरेलू हिंसा सख्ती से लागू करने एवं प्रदेश में शराब बंदी लागू करने बाबत।
महोदयजी,
महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध में मध्यप्रदेश देश के चौथे स्थान पर है तथा बलात्कार के दर्ज मामलों में मध्यप्रदेश पहले नंबर पर है । नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार यौन हिंसा के 99% मामले पुलिस के पास नहीं पहुंच पाते अर्थात घटना होने के बावजूद रफा-दफा कर दिया जाता है,एफआइआर भी दर्ज नहीं होती। यह चिंतनीय है कि प्रदेश में महिला हिंसा की घटना लगातार बढ़ती जा रही है। घरेलू हिंसा के महिला संरक्षण अधिनियम 2005 में संसद द्वारा पारित किया तथा 26 अक्टूबर 2006को लागू हुआ। इसके बावजूद भी महिला हिंसा की घटनाएं बढ़ना यह बतलाता है कि घरेलू हिंसा के दर्ज केसों में की गई कार्यवाही में शिथिलता बरती गई। हम महिलाओं के खिलाफ होने वाले घरेलू हिंसा को सख्ती से रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाने तथा घरेलू हिंसा से संबंधित कानूनों की जानकारी हर महिला तक पहुंचाने की कार्यवाही की मांग करते हैं। घरेलू हिंसा का सबसे बड़ा कारण नशा करके पति द्वारा पत्नी को पीटा जाना है। इसलिए हम प्रदेश में शराबबंदी की मांग को दोहराना चाहते हैं।


किसान संघर्ष समिति,मुलतापी