कुछ लोग कह रहे हैं कि जीएसटी कानून फेल हो गया है। यह बिल्कुल गलत प्रचार है। जीएसटी कानून जिस काम के लिए लाया गया था उसने वह काम बखूबी और पूरी तरह किया है। पहला काम, पूँजीपतियों पर प्रत्यक्ष करों का बोझ कम कर आम मेहनतकश जनता पर अप्रत्यक्ष करों का बोझ बढाना। दूसरा, छोटे पूँजीपतियों की बरबादी को तेज कर बडे इजारेदारों का बाजार हिस्सा और मुनाफा बढाना। जीएसटी ने ये दोनों काम बखूबी किये हैं।
पर जीएसटी पूँजीवादी व्यवस्था के अंतरविरोधों और संकट का हल न दे सकता था न दे सका। बडे इजारेदारों के लाभ के लिए टटपुँजिया वर्ग को बरबाद करना जरूरी था, उसी के लिए यह कानून लाया गया था, उसने यही नतीजा दिया तो अचंभित होने की बात क्या है? बल्कि उसने पूँजीवादी अंतरविरोधों को और भी तीव्र कर एक नये संकट, और भी बडे पैमाने के गहरे संकट, को पैदा कर दिया तो भी अचंभित होने की बात क्या है? हम जैसे तो पहले ही यह बता रहे थे।
पर जब हम कहते हैं पूँजीवाद का संकट तो इसका अर्थ होता है पूँजीवाद द्वारा पैदा किया गया संकट जिसका सारा बोझा बेरोजगारी और कंगाली के रूप में मेहनतकश जनता को झेलना पड़ता है। वही हो रहा है। मजदूर बेरोजगार हो रहे हैं जबकि छोटे काम धंधे करने वाले बरबाद हो कर बेरोजगार मजदूरों की तादाद को और भी बढा रहे हैं।
पर कुछ विपक्षी राजनीतिक दल और बुद्धिजीवी जीएसटी को असफल क्यों कह रहे हैं? क्योंकि ये पूँजीवादी व्यवस्था को असफल नहीं कहना चाहते, ये पूँजीवादी व्यवस्था के ही समर्थक हैं। क्योंकि ये सब खुद भी जीएसटी कानून के समर्थन में थे। अब ये फासिस्ट सरकार की मदद के अपने उस गुनाह पर परदा डालना चाहते हैं।
याद रहे दक्षिणपंथी से वामपंथी तक सभी चुनावी राजनीति करने वाले दल जीएसटी कानून पर एकराय थे, इन सबने उसका समर्थन किया था, बिना किसी अपवाद के आम सहमति से संसद में यह कानून पारित किया गया था। ये सब तब एकराय थे क्योंकि इनमें से कोई भी मेहनतकश जनता के हितों की नुमाइंदगी नहीं करता।
और कोई ये कहे कि संकट की वजह कोविड है तो वह भ्रमित है। कोविड ने संकट के आने की रफ्तार और गहराई को बढाया है पर संकट की वजह पूँजीवादी व्यवस्था के अपने अंतरविरोधों में ही है जिसका किसी सुधारवादी नीति कानून में कोई समाधान नहीं सिवाय मय इन अंतरविरोधों के पूँजीवादी व्यवस्था के ही समूल उन्मूलन के।
जीएसटी पूँजीवादी व्यवस्था के अंतरविरोधों और संकट का हल न दे सकता था न दे सका।