गोंडवाना की राजनीति के चमचमाते सितारे का दुखद अंत ....

*श्रद्धांजली*..........................



जब से मनमोहन शाह भट्टी के चिरायु अस्पताल में कोरोना होने के बाद दिल का दौरा पड़ने से मौत होने की खबर छिंदवाड़ा के साथी डीके प्रजापति से सुनी है, तब से सदमे में हूं। बार बार उनका चेहरा सामने आ रहा है और वे कह रहे हैं कि सब करना पड़ता है डॉ साहब! आप सिद्धांत की राजनीति करते रहो।आप नहीं समझते , अभी जाकर लौट के आता हूं।
हम एक साथ विधायक बने थे ,बाद में किशोर समरीते भी उपचुनाव जीत कर आ गए थे ।
हम तीनों का विधानसभा में साथ उठना-बैठना,आंदोलनों में साथ रहना तीसरे मोर्चे की रणनीति बनाना, गोण्डवाना के अलग अलग धड़ों को एकजुट बनाने की योजना बनाना लगातार चलता रहता था। यदि वो भोपाल में हो और कोई भी आंदोलन को समर्थन देने मैं जा रहा हूं, तो वे बिना पुछे साथ चल देते थे। दिल्ली तक के आंदोलनों में साथ देते थे।
दादा हीरासिंह मरकाम से अलग होने के बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई थी। कभी भाजपा, कभी कांग्रेस के साथ गुणा-भाग किया करते थे। पर जब भी मिलते किसके साथ क्या बात हुई,पूरी बात बताते ,फिर पुछते।मैंने ठीक किया ?
मैं हर समय हंस कर कहता था सब कुछ कर लेने के बाद आप सलाह क्यों लेते हो ? तो वे कहते थे अगर कोई गलती हुई तो अगली बार सुधार लुंगा। गोण्डवाना आंदोलन के साथ जुड़ा होने के कारण उनकी पूरे प्रदेश में आदिवासियों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान थी। जब भी लोकसभा चुनाव आता तब वे कहते डॉ साहब इस बार कमलनाथ को पटक दूंगा, बस आप सात दिन छिंदवाड़ा के लिए दे देना। फिर पूरे चुनाव में उनका फोन नही आता।
छिंदवाड़ा के किसान संघर्ष समिति के आंदोलनों को उनका मौखिक समर्थन तो सदा रहता था। जब कभी पंहुच भी जाते थे।
जब मुझपर और एडवोकेट आराधना भार्गव पर
छिंदवाड़ा में जानलेवा हमला अडानी के गुंडों ने किया तब हमारे अस्पताल पहुंचने के पहले ही वे छिंदवाड़ा के सरकारी अस्पताल में डॉक्टरों के मौजूद थे।
मै हर समय उन्हें उलाहना देता था कि आपके भीतर पूरे प्रदेश के आदिवासियों को इकट्ठा करने की क्षमता है लेकिन आप कुछ संसाधन जुटाने के चक्कर में फंस जाते हो, तो कहते थे डॉ साहब राजनीति तभी चलेगी जब संसाधन हों।
मुझे डीके भाई ने बताया कि वे इन दिनों अपनी पार्टी खड़ी करने के लिए लगातार दौरा कर रहे थे। उन्हें बार बार कोरोना संक्रमण को लेकर चेतावनी दी जा रही थी लेकिन उन्होंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। बीमार तो वे बीच बीच में पड़ते रहते थे ,मैं बराबर कहता था यह उम्र बीमार पड़ने की नहीं है। उम्र तो उनके जाने की भी नहीं थी इसलिए उनका जाना अखर गया। गोण्डवाना राजनीति का चमचमाता सितारा ब्रह्मांड में विलीन हो गया।
किसान संघर्ष समिति, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, भूमि अधिकार आंदोलन, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति, समाजवादी समागम.और समाजवादी पार्टी के सभी साथियों की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि।


डॉ सुनीलम