भीष्म साहनी जयंती : 8 अगस्त पर स्मरण

धर्म और राजनीति के अमानवीय गठजोड़ के रचनात्मक प्रतिरोध की प्रभावी अभिव्यक्ति है भीष्म साहनी जी का प्रेरक अवदान।
भीष्म साहनी जी का अवदान यह तथ्य भी प्रतिपादित करता है कि लेखक के लिए क्रान्तिकारी विचारधारा आखिर क्यों जरूरी है।प्रगतिशील मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता और प्रतिगामी प्रवृत्तियों के कड़े प्रतिरोध से ही लेखन सार्थक होता है। तब ही लेखक सही अर्थों में अपने रचनात्मक दायित्व का निर्वहन कर सकता है। लेखक को गंभीर अध्ययन और तर्क पूर्ण वैचारिक समझ से स्थितियों और घटनाओं का विश्लेषण करना चाहिए।
भीष्म साहनी जी प्रगतिशील आंदोलन में एक योद्धा की तरह आजीवन सक्रिय रहे। वे प्रगतिशील लेखक संघ और भारतीय जन नाट्य संघ के संगठनों में शीर्षस्थ पदों पर रहे।
माध्यम वर्गीय जनता के जीवन और सांप्रदायिक राजनीति की त्रासदी का मार्मिक चित्रण भीष्म साहनी जी ने किया। भारत के विभाजन के समय सांप्रदायिक उन्माद और इससे प्रताड़ित जनता की दुर्दशा का झकझोर देने वाला मार्मिक चित्रण अपने समय का दस्तावेज है। तमस जैसे कालजयी उपन्यास, कहानियों, नाटकों के माध्यम से अभिव्यक्त भीष्म साहनी जी का महत्वपूर्ण अवदान हमें आज भी सांप्रदायिक राजनीति और धर्म के दुरुपयोग का कड़ा प्रतिरोध करने हेतु प्रेरित करता है।


शैलेन्द्र शैली