रमणीक है, दुख भरी कहानी है-उत्तराखंड के चंपावत जिले की एबटमाउंट पहाड़ी



उत्तराखंड के चंपावत जिले की एबटमाउंट पहाड़ी है। हट फ्रांस की लकड़ी के हैं, इनके भीतर देश-विदेश के बड़े लोग रहते हैं।
...योजना है कि पांच करोड़ रुपए से ऐसे ही और हट्स तैयार किए जाएंगे। इस योजना के लिए खेल मैदान समेत 780 नाली भूमि घेर ली गई है। खास बात है कि यह इलाका बांज, बुरांस, चिनार, देवदार, गूलर, चीड़ जैसे खूबसूरत इमारती लकड़ी के घने जंगलों से घिरा है। हट बनाने के लिए लकड़ी विदेश से आई है। मन मोहती जगह पर शैतानी नजरों की कहानी बहुत पुरानी है।
...19वीं सदी में जॉन हेरॉल्ड एबट किन्हीं कारणों से यहां आए तो इस रमणीयता में रम गए। उन्होंने यहां जमीन खरीदी और 13 आलीशान कोठियां बनाईं। बाद में पत्नी की याद में एक चर्च भी बनाया। एबट के साथ कई बुरी घटनाएं हुईं और 1945 में उनकी मृत्यु हो गई। इस बीच यहां मिशनरीज भी सक्रिय हो गईं।
...बताते हैं 1940 में एक सिरफिरा डाक्टर मॉरिस यहां आया। उसने एबट से एक बंगला खरीदा। वह कई सालों तक मुफ्त में इलाज करता और लाइलाज बीमारियों को ठीक कर दिया करता। उसकी ख्याति ऐसी फैली कि दो-ढाई सौ मील दूर से पैदल चल कर मरीज उसके अस्पताल पहुंचा करते। नेपाल और तिब्बत से भी रोगियों का आना-जाना लगा रहता।
...कुछ सालों बाद डाक्टर मॉरिस को खुराफात सूझी। वह मौत का रहस्य जानने की कोशिश करने लगा। वह गंभीर बीमारों को अपने अस्पताल में रखता और उनकी मौत की भविष्यवाणी कर देता। कुछ मरीज उसके बताए दिन ही मरने लगे तो लोगों का उस पर विश्वास और बढ़ गया। ऐसा कहते हैं कि मॉरिस जिस मरीज की मौत की तिथि तय कर देता, उसे अपनी मुक्ति कोठी में रहने की सलाह देता। बहुतेरे लोग इस पर तैयार हो जाते। वह मरीज को छोड़ चले जाया करते।
...डाक्टर मॉरिस में मौत का रहस्य जानने का जुनून सवार हो उठा। वह मरीज के अंगों को काटता, दिमाग को फाड़ता, हृदय चीर कर कुछ हलचल देखा करता। उसने सैकड़ों मानव शरीरों पर प्रयोग किए और उन्हें तड़पा कर मार डाला। उसकी मुक्ति कोठी जल्द कुख्यात मौत की कोठरी बन गई। मॉरिस की कोठी के आसपास खुदाई में कई मानव कंकाल भी मिलते हैं।
...आजादी के बाद सरकारों का भी सिर फिरा। एबट के अधिकतर बंगले उजाड़ हो गए। पहाड़ प्राकृतिक अस्पताल हैं, यहां का मौसम ही कई बीमारियां ठीक कर देता है। एबट की कोठियों में मेडिकल कालेज और चिकित्सालय बनाए जा सकते थे। लेकिन इन कोठियों का कोई इस्तेमाल नहीं हुआ। कुछ सालों पहले विदेशियों में इस इलाके की खूबसूरती देखने का फितूर सवार हुआ। यहां नजदीक से पंचाचूली, त्रिशूल हिमशिखर देखने के लिए हर साल सैकड़ों लोग पहुंचने लगे। पर्यटन विभाग ने सैलानियों के ठहरने के लिए हट तैयार किए। हटों का संपूर्ण निर्माण विदेशी शैली पर हुआ, लकड़ी भी फ्रांस से लाई गई।
...अब सरकार इस इलाके में बची जमीन की घेराबंदी करने लगी है। ग्रामीणों के पास न जंगल बचा और न ही खेल मैदान। खेत नहीं, रोजगार नहीं, स्वास्थ्य की किसी को परवाह नहीं। हट निर्माण का ठेका नेता-अफसरों के साथ मिलकर बड़ी कंपनी को देने की तैयारी है। ईको हटों के भीतर सैलानियों की मौज-बहार होगी। लोक संस्कृति-सभ्यता उजड़ेगी, चौकीदार, खनसमा, वेटर, गाइड यहां के रहवासी होंगे।



..सरकारें कुख्यात डाक्टर मॉरिस की वंशज होंगी
मौत की कोठी के इर्दगिर्द बर्बादी की दासतां होंगी..


Chandrashekhar Joshi