संजय गांधी और वह मनहूस 23 जून,1980

संजय गांधी 23 जून 1980 को सुबह
ही सन 1929 में बने सफदरजंग एयरपोर्ट पहुंच गए। वे अपने 1 सफदरजंग रोड से एयरपोर्ट पांच मिनट में पहुंच गए होंगे। वहां पर उन्हें कैप्टन सुभाष सक्सेना नहीं मिले। तब उन्हें लेने के लिए अलग से कार भेजी गई। वे कुछ देर के बाद एयरपोर्ट पर पहुंच गए। वे उस मनहूस फ्लाइट में जाना भी नहीं चाहते थे। पर संजय गांधी की जिद्द के चलते उन्हें उनका साथ देना पड़ा। फिर दोनों दिल्ली फ्लाईग क्लब के नए विमान 'पिट्स एस 2ए' को उड़ाने के निकल पड़े। वे इससे पहले भी इसी विमान को उड़ा चुके थे। विमान उड़ने के कुछ ही मिनटों के बाद अशोक होटल के पास गिरा। उस समय एनडीएमसी के चीफ आर्किटेक्ट वी.के.बंसल अपने विलिंग्डन क्रिसेंट के सरकारी फ्लैट में थे। वे उस अभागे विमान के गिरने की तेज आवाज को लंबे समय तक भूल नहीं सके थे।


कौन था उस अभागे विभान में संजय गांधी के साथ
संजय गांधी के साथ विमान हादसे में उनके साथ सफदरजंग एयरपोर्ट में फ्लाइंग क्लब के चीफ इन्स्ट्रक्टर कैप्टन सुभाष सक्सेना की भी मौत हो गई थी। सक्सेना अपने माता-पिता और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ लक्ष्मी बाई नगर के सी ब्लॉक में रहते थे। उन्हें ये फ्लैट सफजदजंग एयरपोर्ट के पास इसलिए मिला था ताकि उन्हें कभी भी जरूरत पड़ने पर दफ्तर बुलवा लिया जाए। वे कुछ समय राउज एवेन्यू के सर्वोदय विद्लाय में पढ़े थे। उनके स्कूल के सहपाठी और फिल्म डायरेक्टर श्रीचरण सिंह बताते हैं कि सुभाष सक्सेना स्कूल के दिनों में एनसीसी में बहुत एक्टिव थे। वे एयरफोर्स में ही अपना करियर बनाना चाहते थे। कहते हैं कि उस समय सफदरजंग एयरपोर्ट पर दो कैप्टन सुभाष सक्सेना काम कर रहे थे।
गांधी के बाद सबसे बड़ी अंत्येष्टि
24 जून को सुबह से ही शोकाकुल लोगों से भरनी शुरू हो गई थी वो सड़कें जहां से संजय गांधी के पार्थिव शरीर को शांति वन में अंतिम संस्कार के लिए लेकर जाना था। कहने वाले कहते हैं कि जनभागेदारी के स्तर पर इतनी बड़ी अंत्येष्टि दिल्ली गांधी जी के अंतिम संस्कार के बाद देख रही थी। भीषण गर्मी से बेपवरवाह दिल्ली प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 1, सफदरजंग रोड स्थित सरकारी आवास पर और शांति वन पर भी पहुंच रही थी।
खुले ट्रक पर इंदिरा गांधी
संजय गांधी को सेना का फुलों से लदा हुए ट्रक शिखर दोपहरी में शांति वन के लिए लेकर निकला। खुले ट्रक पर इंदिरा गांधी काला चश्मा लगाकर बैठी थीं। उनके साथ मेनका गांधी, राजीव गांधी और परिवार के कई अन्य सदस्य भी थे।शव यात्रा को सफदरजंग रोड से अकबर रोड, इंडिया गेट, तिलक मार्ग, आईटीओ, बहादुरशाह जफर मार्ग के रास्ते अपने गंतव्य पर पहुंचना था। जिस ट्रक पर संजय गांधी के पार्थिव शरीर को रखा हुआ था, उसके पीछे भी हजारों विलापी बेसुध चल रहे थे। पार्थिव शरीर को लेकर ट्रक धीरे-धीरे अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहा था। जब पार्थिव शरीर शांतिवन पहुंचा तो उधर भी लगभग दो लाख लोग थे। सबकी आंखें नम। अंत्येष्टि स्थल पर पहले से ही इंदिरा गांधी के करीबी योग गुरु धीरेन्द्र ब्रहमचारी मौजूद थे। उनके मार्ग-दर्शन में ही होनी थी अंत्येष्टि। बिड़ला मंदिर के मुख्य पुजारी गोस्वामी गिरधारी लाल भी वहां पर स्टैंडबाई के रूप उपस्थित थे। गोस्वामी जी ने ही पंडित नेहरु जी की अंत्येष्टि करवाई थी।
नहीं थी राजकीय अंत्येष्टि, फिर क्यों झुके झंडे
संजय गांधी की अंत्येष्टि को राजकीय सम्मान का दर्जा प्राप्त नहीं था। वे पांच माह पहले हुए लोकसभा चुनाव में अमेठी से जीतकर आए थे। वे पहली बार ही सांसद बने थे। इसलिए उनकी अंत्येष्टि को राजकीय सम्मान का दर्जा मिलने का सवाल नहीं नहीं था। इसके बावजूद लगभग सभी राजनीतिक दलों के नेता, दर्जनों राजनायिक और जानी मानी हस्तियां पहले ही शांति वन पर पहुंच गई थीं। अजीब इत्तेफाक है कि संजय गांधी की अंत्येष्टि वाले दिन ही 24 जून, 1980 को चेन्नई में देश के चौथे राष्ट्रपति वी.वी.गिरी के निधन के कारण पूरे देश में राष्ट्रीय शोक घोषित कर दिया गया था और दिल्ली के सरकारी भवनों पर लगे राष्ट्रीय ध्वज को आधा झुका दिया गया था।


Vivek Shukla

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