रक्तदान - जीवनदान


विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर साल
14 जून को 'रक्तदान दिवस' मनाया जाता है।
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विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत है लेकिन उपलब्ध 75 लाख यूनिट ही हो पाता है। यानी क़रीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैंकड़ों मरीज़ दम तोड़ देते हैं। राजधानी दिल्ली में आंकड़ों के मुताबिक यहां हर साल 350 लाख रक्त यूनिट की आवश्यकता रहती है, लेकिन स्वैच्छिक रक्तदाताओं से इसका महज 30 फीसदी ही जुट पाता है। जो हाल दिल्ली का है वही शेष भारत का है। यह अकारण नहीं कि भारत की आबादी भले ही सवा अरब पहुंच गयी हो, रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फीसदी रक्तदान स्वेच्छिक होता है। जबकि राजधानी दिल्ली में तो स्वैच्छिक रक्तदान केवल 32 फीसदी है। दिल्ली में 53 ब्लड बैंक हैं पर फिर भी एक लाख यूनिट रक्त की कमी है। वहीं तीसरी दुनिया के कई सारे देश हैं जो इस मामले में भारत को काफ़ी पीछा छोड़ देते हैं। मालूम हो हाल में राजशाही के जोखड़ से मुक्त होकर गणतंत्र बने नेपाल में कुल रक्त की जरूरत का 90 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है तो श्रीलंका में 60 फीसदी, थाईलेण्ड में 95 फीसदी, इण्डोनेशिया में 77 फीसदी और अपनी निरंकुश हुकूमत के लिए चर्चित बर्मा में 60 फीसदी हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है।


रक्तदान को लेकर विभिन्न भ्रांतियाँ
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रक्त की महिमा सभी जानते हैं। रक्त से आपकी ज़िंदगी तो चलती ही है साथ ही कितने अन्य के जीवन को भी बचाया जा सकता है। दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में अभी भी बहुत से लोग यह समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमज़ोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाई होने में महिनों लग जाते हैं। इतना ही नहीं यह ग़लतफहमी भी व्याप्त है कि नियमित रक्त देने से लोगों की रोगप्रतिकारक क्षमता कम होती है और उसे बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं। यहाँ भ्रम इस क़दर फैला हुआ है कि लोग रक्तदान का नाम सुनकर ही सिहर उठते हैं। भला बताइए क्या इससे पर्याप्त मात्रा में रक्त की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है?


विश्व रक्तदान दिवस समाज में रक्तदान को लेकर व्याप्त भ्रांति को दूर करने का और रक्तदान को प्रोत्साहित करने का काम करता है। भारतीय रेडक्रास के राष्ट्रीय मुख्यालय के ब्लड बैंक की निदेशक डॉ. वनश्री सिंह के अनुसार देश में रक्तदान को लेकर भ्रांतियाँ कम हुई हैं पर अब भी काफ़ी कुछ किया जाना बाकी है।


रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान
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आमजन को यह पता होना चाहिए कि मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता बल्कि यह तो बहुत ही कल्याणकारी कार्य है जिसे जब भी अवसर मिले संपन्न करना ही चाहिए।
रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है, कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी उम्र 16 से 60 साल के बीच हो, जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो और जिसे जो एचआईवी, हेपाटिटिस बी या हेपाटिटिस सी जैसी बीमारी न हुई हो, वह रक्तदान कर सकता है।
एक बार में जो 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, उसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घण्टे के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है। दूसरे, जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं।
तीसरी अहम बात यह है कि हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित रेड ब्लड सेल तीन माह में स्वयं ही मर जाते हैं, लिहाज़ा प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है। जानकारों के मुताबिक आधा लीटर रक्त तीन लोगों की जान बचा सकता है।
चिकित्सकों के मुताबिक रक्त का लम्बे समय तक भण्डारण नहीं किया जा सकता है।