फर्जी फोटो आत्मनिर्भरता और कारपोरेटी हिन्दुत्व की नयी बारहखड़ी

#Sunday_Read


🔴 स्वयंसेवक प्रधानमंत्री के गलवान-ज्ञान के बाद भले एक बार फिर साबित हो गया हो कि इनकी निष्ठा देश की जनता को सच बताने के साथ न कभी थी न आज है। झूठ बोलनाऔर झांसा देना जब डीएनए में हो तो किसी भी पद पर पहुँच जाएँ आदत नहीं छूटती। बार बार, हर बार नुमायां दिखती है। मगर इस सबके बाद भी एक बात तो माननी होगी कि भाई लोग पूरी तरह अहसान फरामोश नहीं है। जिस हिटलर से ध्वज प्रणाम लेकर आये हैं उसके गुरुकुल की दीक्षा के प्रति पूरी तरह वफादार - सावरकर महोदय का शब्द लें तो मोस्ट लॉयल एंड ओबीडियन्ट - हैं। सुबह से शाम तक गोयबेल्स को आराध्य मानकर उसके पद चिन्हों पर चलते रहते हैं। पूरी शिद्दत से झूठ, सरासर झूठ बोलने की रियाज करते रहते हैं।
🔴 पिछले दिनों सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और पोलिट ब्यूरो सदस्य बृंदा करात के फोटो पर इसी तरह की धूर्त कलाकारी कर उसे वायरल किया गया। बुध्दिहीन भक्तों ने उसे ताबड़तोड़ साझा करके तूमार खड़ा करने की कोशिश की। लिखते लिखते ध्यान आया कि बुध्दिहीन लिखकर एक अतिरिक्त शब्द खर्च करने की जरूरत नहीं थी ; भक्त में वह समाहित है। खैर।
🔴 इन कुपढ़ मूर्ख-धूर्तों की सक्रियता भस्मासुरी है. वे सिर्फ यही कर सकते हैं और इस मामले में वे अपने आडवाणी, अटल बिहारी वाजपेई, उमा भारती,स्मृति ईरानी तक को नहीं बख्शते तो बाकी तो लगते कहाँ हैं। मूर्खता के गूदे और धूर्तता के रस का अवलेही पाक है संघी ब्रिगेड !!
🔴 इनकी आईटी सैल चौबीस घंटा सातों दिन यही काम करती रहती है। बार बार झूठ पकडे जाने के बाद भी बाज नहीं आते। इतनी ज्यादा तेजी के साथ अपना फर्जीवाड़ा फैलाते हैं कि सब कुछ जानते बूझते भी अनेक भले और समझदार लोग जो इस तरह की वाहियात धूर्तता के फोटो/समाचार देखकर चौंक कर भड़भड़ा जाते हैं।
🔴 इस तरह की पोस्ट्स (99.9%) को पहचानने का सबसे आसान तरीका है इसकी वर्तनी की - लिखावट की अशुध्दियां। भक्तगण हिंदी अंग्रेजी कोई भाषा में लिखें - गारंटी के साथ कभी शुध्द नहीं लिख सकते। वायरल किये गए इसी फेक फोटो में भी अशुध्दि की यह निरंतरता पूरे भक्तिभाव से निबाही गयी है। जबकि इसे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के किसी डीन ने बनाया है जो मिसुर भी है। मगर मजाल कि शुध्द लिखें। स्वाभाविक भी है ये लोग खुद मनुष्यता की वर्तनी में एक अशुध्दि है। भारतीय दर्शन, संस्कृति, साहित्य और समरसता की समृध्द परम्परा में एक व्याकरणी गलती का नतीजा हैं। वे कुछ भी सही करेंगे ऐसी उम्मीद करना किसी भेड़िये से अर्थशास्त्र में पीएचडी करने जैसी असंभाव्य अपेक्षा है।
🔴 मगर बात सिर्फ फेक फोटो भर की नहीं है। राजनीतिक शासन प्रणालियाँ अपने तरह की संस्थाओं का निर्माण करती हैं, वर्चस्व के नए नए तरीके और प्रभुत्व के अपनी तरह के उपकरण गढ़ती हैं। नए और भिन्न राजनीतिक समूह नए नए औजार लेकर आते हैं। मौजूदा शासक समूह के अजेंडे में अब तक के सारे हासिल को उलटना शामिल है। इस सबके लिए एक नए नैरेटिव, नए आख्यान की जरूरत होती है। पिछले कुछ दशकों में इस विषाक्त आख्यान को सर्वव्यापी बनाने के बाद अब भारत के मौजूदा कार्पोरेटी हिन्दुत्व ने इसे थोड़ा और आगे बढ़ाया है। शब्दों को नए अर्थ, सामान्यतः एकदम विलोम अर्थ देते देते अब उसने वर्णमाला - बारहखड़ी- ही नयी रचना शुरू कर दिया है।
🔴 एक ऐसी बारहखड़ी जिसमे अ से अम्बानी, अडानी और अमरीका होते हैं और आ से जो आत्मनिर्भरता बताई जा रही है वह इन तीनों की आत्मनिर्भरता होती है। इस नयी वर्णमाला को प्रामाणिकता दिलाने की हड़बड़ी इतनी अधिक है कि इधर देश गलवान घाटी में हुयी हिंसक मुठभेड़ पर चिंतित और स्तब्ध बैठा है, मारे गए बहादुर सैनिकों के शव तक नहीं लौटे हैं, उधर खुद प्रधानमंत्री कोयला ब्लॉक्स की नीलामी के लिए लगाई जा रही बोली में अपना फड़ सजाकर बैठ जाते हैं। एलआईसी को जिबह करने के लिए एक्सपर्ट कसाइयों के लिए टेंडर जारी कर देते हैं। खेती को जमाखोरों का स्वर्ग और दुनिया भर की एग्री-कारपोरेट कंपनियों का नखलिस्तान बनाने को आत्मनिर्भरता करार देते हैं।
🔴 ठीक ऐसी ही परिभाषा इनके राष्ट्र की है और उसे अमल में लाने के लिए कोरोना महामारी को सुअवसर मानकर कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही। उनके राष्ट्र का आशय अल्पसंख्यकों के वजूद के बिना, दलितों आदिवासियों की अधिकारविहीनता और स्त्रियों की मनु-सम्मत हैसियत वाला समाज है। एक ऐसा बंद समाज जिसमे असहमति रखने वाले कवि, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, युवा युवतियां की जगह सिर्फ जेल हो सकती है।
🔴 सीमा विवाद पर हुयी सर्वदलीय बैठक के बाद प्रधानमंत्री का ट्वीट इसी नयी वर्णमाला का त्रासद विस्तार था, जिसे समेटने की चार पन्नो की दो दो विज्ञप्तियों के बाद भी नहीं बुहारा जा सका तो उसके बाद भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा द्वारा मोदी को देवताओं का भी नेता बताने का दावा इसकी प्रहसनात्मक अभिव्यक्ति थी। "अब तक जैसा चला है वैसा नहीं चलेगा" का 12 मई के भाषण में किया एलान प्रधानमंत्री और उनकी भिन्न तरह की पार्टी कुछ यूं अमल में ला रही है।
🔴 जाहिर है इसे अनदेखा करना या पहले की भांति ही काम करते रहने की जिद पर अड़े रहना ठीक नहीं होगा। इसके लिए खुद को अद्यतन करने और सक्रियता के आयामों का विस्तार करने की आवश्यकता है। जैसे इन फेक और झूठी पोस्ट्स करने वालों, उन्हें साझा करने वालों का खण्डन भर करना काफी नहीं है। अनदेखा तो बिलकुल भी नहीं किया जाना चाहिए। इनके खिलाफ कानूनी कार्यवाही जरूरी है । अधिकतम स्थानों पर पुलिस थानों और सायबर क्राइम में जाकर शिकायत दर्ज करके उसके पीछे पड़ा जाना चाहिए । जब जब ऐसा किया गया है आधा घंटे में ये अपनी पोस्ट डिलीट करते नजर आये है - कुछ तो सोनू निगम की गत को प्राप्त होकर अपना अकाउंट ही डिलीट कर भाग लिए है - क्योंकि मूलतः यह कायर जमात है ।
🔴 जैसे सोशल मीडिया को दोयम दर्जे का फालतू काम समझने की समझदारी को भी बदले जाने की जरूरत है । इस पर योजनाबद्द और विविधतापूर्ण सक्रियता बढ़ाना भी एक काम है । निस्संदेह जनता से रूबरू संवाद से बेहतर कोई माध्यम नहीं है, मगर ये किसने कह दिया कि सोशल मीडिया की सक्रियता जन भागीदारी में बाधा है, यह जनांदोलनों के निखार और परिष्कार का भी जरिया है। दुनिया में पहली समाजवादी क्रांति के नायक लेनिन के मुताबिक़ सबसे असरकारक प्रचार लिखित प्रचार होता है - बैस्ट प्रोपेगंडा इज रिटन प्रोपेगंडा - और इन दिनों लिखित प्रचार का एक बड़ा मंच सोशल मीडिया की यह वर्चुअल दुनिया है। सच लिखना , तथ्य उजागर करना , रोचकता और पठनीयता को खोये बिना उन्हें असलियत बताना जिन्हे बताया जाना जरूरी है।
🔴 झूठ के अँधेरे के साफ़ होने के लिए सूरज का इन्तजार करने की बजाय खुद को जुगनू, चिंगारी, बाती और मशाल बनाने से बेहतर कोई रास्ता नहीं है।



Badal Saroj

#लोकलहर_से_साभार