छत्तीसगढ़ से (राजस्थान) पत्रिका के पत्रकार और मित्र Awesh Tiwari को सच लिखने की वजह से निकाल दिया है। ना कोई नोटिस दिया गया, ना अग्रिम वेतन जिस पर हर कर्मचारी का अधिकार होता है, तत्काल प्रभाव से हटाया गया है। आवेश ने एमपी जाके कमलनाथ की पीसी अटेंड करने वाले पत्रकारों को कोरोना टेस्टिंग के लिए बोला था तब पूरी लॉबी खिलाफ हो गयी थी। PPE किट्स की शॉर्टेज से लेके कोरोना टेस्टिंग तक के लिए मेरा भाई लगातार लिख रहा था। 1 साल से इन्हें प्रताड़ित किया जा रहा था.. पहले फील्ड कवर करने से रोका गया तो अपने निजी स्तर पे लिखने लगे.. और अब सीधा टर्मिनेट ही कर दिया गया..
राजस्थान पत्रिका को वसुंधरा राजे सरकार ने एडवर्टाइजमेंट देने बंद कर दिए थे तो ये भाजपा के खिलाफ लिखने लगे थे.. लेकिन मोदी_2 के आने पे पत्रिका ने फ्रंट पेज एडिटोरियल #जन_गन_मन_अधिनायक लिख के वापस चाटुकारिता की सड़ांध में डुबकी लगा ली थी.. तब से ये भी गोदी मीडिया में शामिल हो गयी थी..
मेरा आग्रह है कि आवेश भाई बहुत जल्द यूट्यूब चैनल लॉन्च करें.. ताकि स्वतन्त्र कलाम अनवरत चलती रहे.. पुण्य प्रसून वाजपेयी, अभिषार शर्मा जैसे कई पत्रकारों के बाद एक नाम और जुड़ गया इस तानाशाही के प्रोसेस में.
रायपुर पत्रिका में समाचार संपादक और मित्र Awesh Tiwari के बारे में सूचना है कि उन्हें आज सेवा समाप्ति का नोटिस मिल गया।
करीब एक साल से उन पर उस तरह की पत्रकारिता करने का दबाव था, जिसे हम और आप गोदी मीडिया के नाम से जानते हैं।
उल्टे-सीधे धंधे, सरकार के खिलाफ खबरें 'प्लांट' करने और सरकार से संस्थान के हित साधने का दबाव।
सब कुछ बर्दाश्त करके भी आवेश टिके हुए थे। आज उन्हें आखिर नोटिस थमा दिया गया।
लॉक डाउन के दौरान ही उन्हें खबरें न लिखने की हिदायत दी गई थी। वजह साफ थी- आवेश सवाल पूछने वाले, एक चिंतनशील और संवेदनशील पत्रकार हैं।
छत्तीसगढ़, जहां मैं पला-बढ़ा- वहां के कुछ बेहतरीन पत्रकारों में से एक हैं आवेश।
दुर्भाग्य से आज की मीडिया अलग रास्ते पर चल पड़ी है। पत्रिका ने पैनी खबरों और अच्छी टीम जुटाकर शुरुआत तो खूब की, लेकिन अब कमोवेश एमपी-सीजी में यह कुप्रबंधन और संसाधनों की लगातार कमी के चलते ढलान पर है।
सिर्फ वही टिक पा रहे हैं जो चरण वंदना और संपादक/संस्थान के हितों के अनुसार ढल चुके हों।
आवेश की खबर एक बार फिर भीतर खलबली मचा रही है। घर-परिवार और कैरियर। आगे क्या- इन सबसे भी ज़्यादा गंभीर सवाल है कि आखिर कब तक?
हम सभी को इस बारे में संवेदनशील होकर सोचना चाहिए कि कैसे एक गंभीर, सच्ची, जुझारू पत्रकारिता को ज़िंदा रखा जाए।
अगर हम यह नहीं कर पाए तो समझें कि लोकतंत्र को राजतंत्र में तब्दील होने से बचा पाना नामुमकिन हो जायेगा।