मक़बूल फ़िदा हुसैन की बरसी पर


नंगे पैर रहने वाले हुसैन का कला के प्रति नज़रिया सबसे जुदा था. वह कला को
स्टूडियो और आर्ट गैलरियों से बाहर ले गए.l समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया के सुझाव पर हुसैन ने रामायण और महाभारत की कथाओं पर आधारित विशाल पेंटिंग्स की सीरीज बनाकर उन्हें बैलगाड़ियों में रख गांव-गांव प्रदर्शित किया.l हुसैन की कला की ख़ासियत यह रही कि वह किसी भी बड़ी घटना पर पेंटिंग के ज़रिए फ़ौरन प्रतिक्रिया व्यक्त कर देते थे.l चांद पर पहली बार इंसान पहुंचा हो या फिर 1971 के भारत-पाक युद्ध में इंदिरा गांधी द्वारा लिए गए फैसले हों या फिर मदर टेरेसा को नोबल पुरस्कार मिलने की घटना, हुसैन ने इन पर तत्काल पेंटिंग बनाकर प्रशंसा और आलोचना दोनों हासिल कीं. l- चित्रकारी ने हुसैन की पहचान बनाई, लेकिन हुसैन को चित्रकारी से भी ज़्यादा दिलचस्पी फ़िल्मों में रही। 1967 में उनकी बनाई एक प्रयोगात्मक फ़िल्म 'थ्रू द आइज़ ऑफ़ अ पेंटर' ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय शोहरत दिलवाई। इसके बाद हुसैन ने कुछ डाक्यूमेंट्री फ़िल्में भी बनाईं। फिर हुसैन ने माधुरी दीक्षित को लेकर गजगामिनी बनाई। तब्बू और कुणाल कपूर स्टारर मीनाक्षी उनकी अंतिम फ़िल्म थी। चित्रकारी और सिनेमा के अलावा हुसैन की दिलचस्पी कविता में भी थी। उन्होंने अंग्रेज़ी और उर्दू में कविताएं तो लिखी हीं, उर्दू शायरों के हज़ारों शेर हुसैन को याद थे। ग़ालिब, जोश मलीहाबादी और मोहम्मद इक़बाल के कई शेर हुसैन की पेंटिंग का हिस्सा भी बने
1996 में हुसैन की पेंटिंग्स पर हिंदू देवी-देवताओं को अपमानित करने का आरोप लगा और एक सुनियोजित मुहिम के ज़रिए पूरे देश में हुसैन के ख़िलाफ़ ऐसा माहौल बनाया गया कि कई स्थानों पर हुसैन की पेंटिंग जलाई गई. उनके पक्ष में बोलने वालों के साथ दुर्व्यवहार किया गया. हुसैन के ख़िलाफ़ क़रीब 1000 मुक़दमे दर्ज कराए गए.l 2006 से निर्वासित जीवन बिताते हुए 9 जून 2011 को लंदन मे हुसैन का इंतकाल हुआ l 17 सितंबर 1915;को जन्मे इस अनूठे चित्रकार की आजपुण्यतिथि है l महान कलाकार को सलाम l