भारत सहित पूरी दुनियां की लूट करने के लिये कारपोरेट कंपनियां खेती, उद्योग और व्यापार पर कब्जा करना चाहती है। भारत में इन कंपनियों ने योजनाबद्ध तरीके से ग्रामोद्योग को खत्म किया। जल, जमीन, खनिज पर मालिकाना हक प्राप्त किया। अब वह खेती और व्यापार पर कब्जा करना चाहती है। भारत सरकार द्वारा जल, जंगल, जमीन, खनिज आदि प्राकृतिक संसाधनों पर कारपोरेट्स को मालिकाना हक देने के लिये नीति और कानूनों में बदलाव की प्रक्रिया जारी है। बैंक, बीमा कंपनियां, रेल और सभी सार्वजनिक क्षेत्रों को देशी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले किया जा रहा है। अब सरकार खेती और व्यापार को कारपोरेट्स को सौंपने के लिये नीतियां और कानूनों में बदलाव करने का काम कर रही है।
किसानों की आय दोगुनी करने के लिये किसानों की संख्या आधी करना और धीरे धीरे खेती में केवल 20 प्रतिशत किसान रखकर बाकी किसानों को खेती से बाहर करना केंद्र सरकार और नीति आयोग की घोषित नीति है। यह 20 प्रतिशत किसान कारपोरेट किसान होंगे, जो कंपनी खेती या करार खेती के माध्यम से खेती करेंगे। सरकार मानती है कि छोटे जोत रखनेवाले किसान पूंजी, तंत्रज्ञान के अभाव के कारण अधिक उत्पादन की चुनौती को स्वीकार नही कर पाते इसलिये उन्हे खेती से हटाना जरुरी है।
केंद्र सरकार की कृषि नीति कारपोरेट खेती की दिशा में आगे बढ रही है। भारत में अब करार खेती या कारपोरेट खेती के माध्यम से कंपनियां खेती करेगी। रासायनिक खेती, जैविक खेती में बीज, खाद, कीटनाशक, यंत्र और तंत्रज्ञान आदि इनपुट पर कंपनियों ने पहले ही नियंत्रण प्राप्त किया है। यह कारपोरेट कंपनियां अब खेती का मालिक बनकर या करार खेती के माध्यम से खेती करेगी। मंडियों के अंदर इ नाम द्वारा और मंडियों के बाहर एक देश एक बाजार में कृषि उत्पाद खरीदा जायेगा। फसलों का उत्पादन, भांडारण, प्रक्रिया उत्पाद, घरेलू बाजार और विश्व बाजार में खरीद, बिक्री, आयात, निर्यात सभी काम यह बहुराष्ट्रीय कंपनियां करेगी।
दुनियां के कौनसे देश में कौनसे उत्पादन की कितनी जरुरत है इसका अध्ययन कर डाटा इकट्ठा किया जायेगा और कारपोरेट खेती या करार खेती द्वारा दुनियां के बाजार के लिये अधिक मुनाफा देनेवाली कृषि उपज पैदा की जायेगी। कंपनियों द्वारा गुणवत्ता मानक के आधार पर किसानों से ऑनलाइन फसलें खरीदी जायेगी। स्थानीय गोदामों में ही भांडारण किया जायेगा। साथही कृषि प्रक्रिया उद्योगों में तैयार उत्पाद बनाये जायेंगे। खरीद और बिक्री के लिये सप्लाई चैन का नेटवर्क बनाकर कच्चा माल और प्रक्रिया उत्पाद दुनिया के बाजारों में मुनाफे की संभावना देखकर बेचे जायेंगे। यह कंपनियां आयात निर्यात के माध्यम से फसलों के दाम बढाने, घटाने का काम करेगी।
इसे एक उदाहरण से समझते है। मान लीजिये किसी कंपनी को आलू का उत्पादन करना है। किसानों की प्रोड्यूसर कंपनियां बनाने का काम तो पहले से चल रहा है। कंपनी करार खेती द्वारा किसी उत्पादक किसान के समूह के साथ एक करार करके आलू की पैदावार सुनिश्चित करेगी। सभी इनपूट, तकनीकी और यांत्रिकी उपलब्ध करायेगी। उत्पादन की गुणवत्ता बनाये रखने के लिये किस कंपनी से कौनसा बीज, खाद, कीटनाशक का इस्तेमाल करना है यह सब कंपनियां तय करेगी। गुणवत्ता के मानक पूरे करने पर ही आलू तय कीमत पर खरीदा जायेगा। किसान अगर प्रशिक्षित है तो खेती में मजदूरी कर सकेगा। यह गुणवत्ता पूर्ण आलू या फिर आलू चिप्स या अन्य प्रक्रिया उत्पाद घरेलू या विदेशी बाजार में जहां अधिक मुनाफा मिलेगा वहां बेचा जायेगा।
मान लीजिये भारत में प्याज की पैदावार अच्छी हुई है। किसानों को बाजार में अच्छे दाम मिल रहे है। तब यह कंपनियां विदेशों से प्याज आयात करके बाजार में उतारेगी और प्याज की कीमतें गिरा देगी। फिर गिरी कीमतों में बडे पैमाने में प्याज खरीद कर पीपीपी में बनाये गये गोडाउन में जीवनावश्यक वस्तु अधिनियम से हटने के कारण चाहे जितना भांडारण कर लेगी और दुनिया के बाजार में जहां जब अधिक मुनाफा मिलेगा वहां बेचेगी। यह तो आज भी होता है लेकिन अब उसे कानून बनाकर एक व्यवस्था का रुप दिया जा रहा है।
किसानों के लिये तो आज की व्यवस्था भी लूट की व्यवस्था है। जिसने किसानों को बदहाल करके रखा है। लेकिन अब इस लूट व्यवस्था को वैश्विक लूट व्यवस्था में बदलने और कानूनी दायरे में लाने के लिये बदलाव किये जा रहे है। पारिवारिक खेती को कारपोरेट खेती में बदलने के लिये कानूनी बाधाएं दूर करने हेतु केंद्र सरकार नीति और कानून में बदलाव करने का काम कर रही है। इसी उद्देश को पूरा करने के लिये केंद्र सरकार ने करार खेती कानून, जीवनावश्यक वस्तु अधिनियम, कृषि उपज वाणिज्य एवं बाजार अध्यादेश बनाये गये है।
कृषि के लिये बिजली की सबसिडी खत्म करना, सिंचाई के लिये मीटर से नापकर पानी की बिक्री, पेट्रोलियम पर सबसिडी खतम करना, खेती में पूंजी निवेश की अनुमति देना, इजरायल और दूसरे देशों से कृषि तकनीकी प्राप्त करना, करार खेती कानून, खेती जमीन की अधिकतम सीमा निर्धारित करनेवाला सीलिंग कानून हटाने की कोशिश, पीपीपी के तहत गोडाउन का निर्माण, कृषि उत्पादों के भांडारण की मर्यादा हटाना, कृषि उत्पन्न बाजार समिति का अस्तित्व समाप्त करने के लिये एक देश एक बाजार कानून, कृषि उपज खरीद और प्रक्रिया के लिये प्रोड्यूसर कंपनी कानून, किसानों से सीधे ऑनलाइन खरीद के लिये इ नाम कानून आदि में कारपोरेट खेती को लाभ पहुंचाने के लिये नीति और कानून में बदलाव की प्रक्रिया जारी है।
करार खेती कारपोरेट खेती का प्रवेश द्वार है। सीलिंग ऐक्ट के कारण कंपनियां खेती करने के लिये एक मर्यादा से अधिक जमीन नही खरीद सकती। इसलिये सीलिंग ऐक्ट हटाने की कोशिश जारी है। करार खेती में किसी उत्पादक किसान समुदाय से करार किया जायेगा। करार खेती में किसानों को कंपनियों के दिशानिर्देशों के अनुसार खेती करनी होगी।
कंपनियों ने अपने उत्पाद बेचने के लिये व्यवस्था स्थापित कर ली है। कंपनी से ग्राहकों तक सप्लाई चेन, इ बाजार, इ कॉमर्स, इ मार्केटींग आदि के द्वारा उत्पाद पहुंचाया जायेगा। मॉल्स, शॉपिंग सेंटर, रिटेल दुकानें आदी में कंपनियां लगातार विस्तार कर रही है। इसके लिये हर क्षेत्र में खरीद बिक्री दोनों के लिये सप्लाई चैन तैयार की जा रही है। भारत के लघु उद्योजक और छोटे व्यापारी केवल कमीशन एजंट या फ्रेंचाइजी के रुपमें काम करेंगे।
भारत सरकार द्वारा नीति और कानूनों में किये जा रहे बदलाव को एक साथ जोडकर देखने से नये भारत की भविष्यकालीन तस्वीर स्पष्ट होती है। अब हम आसानी से समझ सकते है कि सरकार स्वदेशी और आत्मनिर्भरता के लिये नही बल्कि खेती को कारपोरेट्स के हवाले करने के लिये कानून बना रही है। लेकिन जैसे शराब भरी बोतल पर अमृत लिख देने से शराब अमृत नही बन जाती वैसे ही कारपोरेट्स को लाभ पहुंचाने के लिये नीतियां बनाकर उसे स्वदेशी और आत्मनिर्भरता कह देने से देश आत्मनिर्भर नही बनता। मेक इन इंडिया और परनिर्भरता को स्वदेशी और आत्मनिर्भर कहना केवल झूठ ही नही, बल्कि वह देश के किसान, लघु उद्योजक और छोटे व्यापारियों के साथ किया जा रहा धोका है।
जब किसानों के सामने इतनी बडी चुनौति हो, इस गंभीर संकट से लढने के लिये किसानों को तैयार करने की जरुरत हो, तब कुछ किसान संगठन देशभर के किसान संगठनों को एकत्रित करके स्वामीनाथन आयोग के अनुसार सी2 से देड गुना कीमत और कर्ज माफी जैसे केवल दो मांगो के लिये आंदोलन कर देश के किसानों को गुमराह करने का काम कर रही है। कुछ किसान संगठनों द्वारा जीवनावश्यक वस्तु अधिनियम, सीलिंग ऐक्ट को किसान विरोधी कानून कहकर उसे हटाने की मांग की जा रही है। यह तभी हो सकता है जब ऐसे संगठन कारपोरेट खेती के गंभीर संकट को समझ नही रहे या फिर वह कारपोरेटी साजिस में शामिल है। स्वामीनाथन फाउंडेशन भी उन्हे मदद कर रहा है।
कर्ज माफी से किसानों को कुछ लाभ जरुर है लेकिन इस मांग का महत्व तभी है जब किसानों को कर्ज के जाल से स्थाई मुक्ति के लिये प्रयास किया जाये अन्यथा कर्ज माफी किसानों को कम साहुकार बैंको को ज्यादा मददगार साबित होती है। एमएसपी फसलों का उत्पादन मूल्य नही है बल्कि वह किसानों को न्यूनतम मूल्य की गारंटी देने के लिये बनाई गई व्यवस्था है। एमएसपी के तहत कुल उत्पादन के 10 प्रतिशत से कम फसलें खरीद की जाती है। अगर सी2 पर 50 प्रतिशत दाम बढा दिये जाते है तब भी किसान की आय में केवल 20 प्रतिशत की बढोत्तरी होगी।
प्राकृतिक खेती को रासायनिक खेती में बदलने में, थाली में जहर पहुंचाने में, बीजों की स्वाधीनता, फसलों की जैवविविधता नष्ट कर एक फसली खेती में बदलने के लिये अगर कोई एक व्यक्ति सबसे अधिक जिम्मेदार है तो वह एम. एस. स्वामीनाथन जी है। इसके बावजूद स्वामीनाथन आयोग लागू करो की मांग बेईमानी है।
खेती को रसायन मुक्त और थाली को जहर मुक्त करना जरुरी है ऐसा हम सब मानते है। इसके लिये किसानों ने प्राकृतिक खेती करना शुरु किया है। लेकिन बनियां नजरियां लाभ कमाने के लिये हर काम को अवसर में बदलने का काम करती है। विष रहित खाद्यान्न की बढती मांग को लाभ में परिवर्तित करने के लिये अब कारपोरेट कंपनियों ने जैविक खेती और प्राकृतिक खेती करना शुरु कर दिया है। और इसके लिये सरकार और कारपोरेट कंपनियों ने मिलकर योजना बना ली है।
केंद्र सरकार ने भारत को पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के लिये पांच सालमें 100 लाख करोड रुपयों के हिसाब से हरसाल 20 लाख करोड रुपये निवेश करने की घोषणा की थी। इस साल सरकार द्वारा घोषित 20 लाख करोड रुपयों में लगभग 80 प्रतिशत राशि कर्ज की व्यवस्था है। यह बैंकों की साहूकारी की व्यवस्था है। इसे आप विदेशी बैकों की निवेश अनुमति से जोडकर देखेंगे तब तस्वीर और साफ होगी।
अभी भी भारत की स्थिति बहुत बिकट है लेकिन वर्तमान सरकार जो नीतियां अपना रही है, उससे हम कारपोरेटी गुलामी से बच नही पायेंगे। उससे देश पूरी तरह से कारपोरेटी गुलामी में जकड जायेगा। हम अंग्रेजों के देड सौ साल गुलाम रहे लेकिन अगर हम कारपोरेटी गुलामी में जकड गये तो हजारों साल तक इस गुलामी से मुक्त होना संभव नही है।
हे मेरे देश के किसानों, केंद्र सरकार द्वारा भारत की खेती को कारपोरेट्स के हवाले करने के नीति और कानूनों का विरोध करने के लिये संगठित होकर संघर्ष करना होगा। आओं, किसानों के लिये न्याय और आजादी के लिये हम मिलकर संघर्ष करते है।
विवेकानंद माथने
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