अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस ( 23 जून )

                           आज अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस है ( 23 जून )

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पूरी दुनिया में रहने वाली विधवाओं के प्रति मानवीय और संवेदनशील दृष्टिकोण से उनकी समस्याओं के निदान के लिये जागरूकता फैलाने के लिये इसका आव्हान किया जाता है। अभी 21 जून को मोदी सरकार ने बड़े धूमधाम से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को देश की जनता से मनवाया था। लेकिन आज सरकार और मीडिया दोनों को नींद लग गई या वे विधवा दिवस के विरोधी हैं यह पता नहीं चला। आज 23 जून तक देश में लगभग साढ़े पाँच करोड़ विधवाओं का अनुमान किया गया है। भारतीय समाज ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण रहा है। लेकिन विधवाओं के प्रति इस मामले में क्रूर ही कहा जा सकता है। मनुस्मृति में विधवाओं के कर्तव्यों का विस्तार से वर्णन है लेकिन विधुरों के बारे में कुछ नहीं दीखता।भारतीय समाज में विधवाओं के प्रति क्रूरता का जीता जागता उदाहरण है - वृंदावन की विधवायें। सती प्रथा और बाल विवाह के अलावा बेमेल विवाह हमारे समाज की बीमारी रही है। वैसे भी आर्थिक और सामाजिक जीवन में महिलाओं की स्थिति भारत में बहुत खराब है। ऐसे में किसी महिला का विधवा होकर समाज में जीवन यापन करना उसके लिये कितना भयावह है, यह समझा जा सकता है। समाज में साम्प्रदायिक दंगे हों या आतंकवादी घटनायें, स्त्रियां ही यौन हिंसा का शिकार होती हैं अथवा विधवा होती हैं। परिवार के लोग भी विधवाओं के साथ क्रूरता और अन्याय में पीछे नहीं रहते । अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस पर हमें सभी मोर्चों पर उनके पुनर्विवाह, उनके आर्थिक स्वावलंबन, उनके पारिवारिक और साम्पत्तिक अधिकारों, उनके सामाजिक और नैतिक अधिकारों की रक्षा के लिये लड़ने की जरूरत है। बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक साम्प्रदायिकता, आतंकवाद, जातिवाद, सामंती और पूँजीवादी ढाँचा विधवा महिलाओं , धर्मशास्त्र महिलाओं , विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ खड़े हैं। इसलिए इन दुश्मनों के खिलाफ भी लड़ने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस का उद्देश्य तभी सफल होगा ।


gopal rathi