#आपातकाल में जेल की सलाखों में बन्द

#आपातकाल में जेल की सलाखों में बन्द रहे
#मिथिलेशसिंह ने काले अध्याय को कलमबन्द किया।


18 मार्च 1974 से ही सम्पूर्ण क्रांति आन्दोलन मे सक्रिय था । कयि बार पुलिस प्रशासन के द्वारा नजरअंदाज किया गया और मुक्त भी किया गया । तिथि ठीक याद नहीं है मैं बिहिया मे छात्रों द्वारा आयोजित कार्यक्रम मे था जिसमें हमलोगों के पुज्य नेता पं रामानंद तिवारी भी थे । सभा समाप्ती के बाद मित्र चालिस नाथ राम और सिद्धनाथ सिंह ने जानकारी दी कि दूसरे दिन उदवतनगर प्रखणड के मैदान मे छात्र संघर्ष समिति के द्वारा कार्यक्रम आयोजित है । परमपुज्य तिवारी जी का वह शब्द मुझे सदैव याद रहता है - कि - - बेटा मिथिलेश काल उदवतनगर मे लयिकन के कार्यक्रम मे तोहरा जाय के चाही । तिवारी जी के आदेश को श्रद्धाूर्वक मानना ही था । मैं उदवतनगर जाने का अपना संकल्प तिवारी जी को समर्पित कर दिया । तिवारी जी के जोगा जीप के पिछले सिट पर बैठ कर आरा तक आया । तिवारी जी पटना चले गए । मैं आरा रमना मैदान से उन दिनों आरा न्यायालय के चर्चित एवं सम्मानित वकील जो हम युवकों के चाचा थे उनके निवास पर गया । पाकेट मे मात्र सात रूपया था । गिरजा चाचा के निवास पर भूजा खा रहे थे उसी समय पियनिया के चर्चित समाजवादी नेता रामदयाल चाचा आ गये । पुछने पर मैंने रामदयाल चाचा और गिरजा चाचा को जानकारी दिया कि जेब मे सात रूपया हैं । गिरजा चाचा कुछ प्यार का डाँट लगाते हुए दस दस रूपया का दो नोट थमाया । जब झोला लेकर चलने लगे तब रामदयाल चाचा ने भी दश रूपया मुझे दिया । उन दिनों तीस रूपया बहुत हुआ करता था । अब मैं बिक्रमसेठ था । मथौलिय के रामनारायण आरा के सुशील तिवारी लताफत हुसैन सब एक साथ आरा से पैदल चलो कर लगभग 8 बजे रात्रि मे भाई सिद्धनाथ सिंह के घर उदवतनगर पहुँचे थे ।ठीक याद है शुद्ध घी मे बना फराठा आलुबैगन का स्वादिष्ट शब्जी और बड़े कटोरा मे दूध खाये और पीये थे ।
दुसरे दिन घेराव कार्यक्रम मे लाठी चली गिरफ्तार भी हमलोग किये गये । लाठी तभी चली जब मैं भाषण दे रहा था । गिरफ्तारी के बाद हमलोगों के नेता राम एकबाल वरसी जी के इसारे पर लेताफत सुशील सहित कयि मित्र भागने मे सफल हो गये परंतु मैं रामनारायण चालीसनाथ नहीं भाग सके। राम एकबाल वरसी जी के नेतृत्व मे हम23 आन्दोलनकारी मंडल कारा आरा मे नजरबंद कर दिए गये । लगभग दो माह बाद हमलोग कारा से मुक्त कर दिये गये ।
25 जून को मैं अपने रामोबरिया गांव के अपने दालान के छत पर रात मे सोया था । करीब रात्रि 10 से ज्यादा हो रहा था कि पड़ोस दहिवर गांव के सहयोगी मित्र नेतलाल जी दौड़कर आये और जानकारी दिये कि पुलिस हमलोगों को गिरफ्तार करने के लिय आ रहीं है नाव से गंगा पार चल चलना है। पुलिस के आने की सूचना नेतलाल जी को दहिवर गांव का राष्ट्रभक्त चौकिदार दिया था जो सत्य था । नेतलाल जी चौकन्ना थे । मुझे सूचना दे कर उत्तर दिशा गंगा नदी के तरफ बढ़ गये । रात्रि ग्यारह से ज्यादा हो रहा था कि जबतक मैं कुर्ता पैजामा पहनता तबतक पुलिस मेरे घर दालान को घेर लिया । बुद्धिमानी मेरा छोटा भाई घनश्याम ने किया कि दालान के मुख्य दरवाजे मे ताला लगा दिया और चाभी खोजने का नाटक करने लगा । तबतक मेरे दालान से सेट मेरे गोतिया के भोजीबाब का एक विशाल नीम का पेड़ था जिसका एक डाल मेरे दालान के उपर था। मैं अपना कुर्ता पैजामा गंजी अपने दालान के छत से भोजीबाब के छत पर सोय चचेरा भाई चन्द्रबली को फेंका और काला रंग का कच्छा पहन कर नीम के पेड़ के सहारे जहाँ चचेरा भाई चन्द्रबली सोया था उस छत पर पहुँच गया और उसी के आँगन से गाँव की गलियों को चिरते हुए अपने गाँव के पुल पर आया जहाँ नेतलाल जी मेरा इंतजार कर रहे थे । हमदोनो गंगा नदी के किनारे उमरपुर आगये । रामबिलास यादव ने प्रयास कर नाव से बिचली दियर मे लगभग दो बजे रात्रि मे गए ।
भूमिगत हो हमलोग सक्रिय रूप से काम करने लगे । मुख्यालय मूलतः आरा ही था । 8 सितम्बर 1975 को डिहरी और नासरीगंज के बीज में जार्ज फर्नांडीस को कहीं आना था जिसमें शाहावाद के बीस लोगों को जार्ज फर्नांडीस से मिलना था जिसमें एक मैं भी था । मूल ब्यवस्थापक त्रिभुवन थे । पहले त्रिभुवन भाई से मिलना था फिर त्रिभुवन भाई के बताए स्थान पर जार्ज फर्नांडीस से हम मिलते ।
त्रिभुवन भाई सहित अखलाक पर और हमपर शाहावाद पुलिस का बिशेष निगाह था । धनुपरा गनपत चौधरी से गुप्त सूचना कि गोटपा हमको जाना है जहाँ त्रिभुवन भाई मिले गे।
मैं अपने विद्धर्थी जीवन मे भी पैन्ट शॉर्ट नहीं पहना परंतु मैं पहचान मे न आ सकूँ आरा से उमेश का पैन्ट और शर्ट ले कर शलील मुझे धनुपरा पहुँचाया था और मैं वही पैन्ट शर्ट पहन कर धनुपरा से गोटपा के लिय निकला । पुरानी राजदूत मोटरसाइकल था। शलील भी पीछे बैठा था । परंतु वह गोपाली कुआ ही उतर गया और मैं एक मित्र से मिलने चौखम्भा गली मे गया और मात्र 15 मिनट मे वापस हुआ और गली से मुख्य सड़क पर आते ही सदा लिवास मे नवादा थाना प्रभारी सहित लगभग 20 से ज्यादा पुलिस कर्मी रिभाल्भर लिय मुझे घेर कर गिरफ्तार कर नवादा थाना लाऐ।
थाना मे लाते ही खुफिया निगरानी विभाग के डी एस पी - डी के खुराना बार बार एकही सवाल पुछता रहा कि मैं डायना माईट कहा रखा हूँ? इसके लिये रातभर मारपीट करते कयि तरह की यातनाये तीन दिनों तक दिया गया । परंतु मैं भी संक्लपीत था कि मैं मृत्यु वरण करूँगा परंतु अपने नेता गणपति चौधरी का नाम उजागर नहीं करूँगा क्यों कि 6 डायनामायिट चौधरी जी ही भूसवुल मे था । डी के खुराना मूझे तीन दिन मारते पीटते यातना देते हम से पराजित हो गया यानी हमसे किसी तरह का सुराग नहीं निकाल सका। मैं घायल था परंतु बिजेता मुद्रा में था । तीन दिन बाद मैं डी आइ आर के अन्तर्गत आरा जेल मे नजरबंद कर दिया गया ।
आरा जेल मे ही मुझे मीसा मे नजरबंदी का आदेश दिया गया जिसमें जेल प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि चार माह से ज्यादा मुझे एक जेल मे न रखा जाय। फलस्वरूप मुझे आरा से बक्सर - बक्सर से गया - गया मे तो मौझे त्रिभुवन भाई और नरेंद्र को फाँसी सेल मे बड़े कठोरता पूर्वक रखा गया । गया जेल से त्रिभुवन भाई को डालटनगज नरेंद्र को मुजफ्फरपुर और मुझे हजारीबाग भेजा गया । फिर हजारीबाग से सेन्ट्रल जेल भागलपुर फिर कैम्प जेल भागलपुर फिर वापस आरा मे लाकर 19 महिना कै बाद नजरबंदी से मूक्त किया गया ।