आपातकाल-आज़ाद भारत  के इतिहास का एक काला धब्बा

 आपातकाल मे जिस तरह से सत्ता का दुरूपयोग हुआ वह आज़ाद भारत के इतिहास की ऐसी घटना के रूप मे याद किया जायेगा जब संविधान लोकतंत्र और जनता के मौलिक अधिकार तत्कालीन सत्ता के बंधक बन गए थे वह एक ऐसा दौर था जब  अखबारों पर  सेंशरशिप लागू कर दी गयी थी इंदिरा गाँधी की सत्ता को चुनौती देने वाला हर एक शख्श सलाखों के पीछे पंहुचा दिया गया था वरिष्ठ अधिवक्ता मुरलीधर शर्मा ने बताया की सबसे ज्यादा प्रताड़ना जॉर्ज फर्नांडिस को दी गयी जॉर्ज को हथकड़ी पहना कर पैरों मे बेड़िया डालकर रखा गया यह सारा खेल सत्ताको चुनौती देने वालो के लिए खेला जा रहा था ताकि सत्ताकी दरक रही दीवार को गिरने से बचाया जा सके और तानाशाही का खौफ बदस्तूर जारी रहे अधिवक्ता मुरलीधर शर्मा को भी गिरफ्तार कर 19 माह तक जेल मे रखा गया था इसी बीच उनके पिता की मृत्यु हो गयी और उन्हें पुलिस कस्टडी मे उनके अंतिम संस्कार मे शामिल होने की इजाजत दी गयी उन्हें इस बात का आज भी भयंकर मलाल  है की अपने पिता की मृत्यु के दौरान वह उनके साथ नहीं थे अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का काम उस दौरान किया गया जो आज़ाद भारत  के इतिहास का एक काला धब्बा बन गया 
आपातकाल की ये दो तस्वीरें बताती है कि सत्ता बचाने और अपनी तानशाही को कायम रखने की महत्वाकांक्षा संविधान, लोकतंत्र और मौलिक अधिकारों को कैसे कुचलती है जो 25 जून 1975 की मध्यरात्रि को भारत में तत्कालीन श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने दिखाया था जिसने यह सन्देश  दिया कि तानाशाही का यह मार्ग सब कुछ नष्ट भी कर देता है, एक तस्वीर प्रख्यात समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस जी की है जिनके हाथ और पैरों में बेड़ियां है और दूसरी  मुरलीधर शर्मा एडवोकेट की है जो मीसाबंदी के रूप में जेल से पुलिस हिरासत में अपने पिता के अंतिम संस्कार और दर्शन के लिए इलाहाबाद के गंगा तट पर ले जाये गये थे और फिर रीवा के सेंट्रल जेल में वापस बंद कर दिये गये थे पूरे 19 महीने जेल में रहे,अब देश कभी ऐसी तानशाही, बदहाली और लाचारी के दिन न देखें ।
आपातकाल की 45 वी वरसी पर सतना मध्यप्रदेश के समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरे।