भोपाल ।
कोरोना महामारी की आड में जिस प्रकार से श्रम कानूनों को म.प्र. की भाजपा सरकार ध्वस्त कर रही है,उससे साफ है कि कोरोना महामारी के नाम पर मजदूरों मेहनतकशों के अधिकारों का गला घोट उद्योगपतियों को लूट की पूरी छूट देने के एजेण्डे को तेजी से लागू किया जा रहा है। कल (5 मई)को मध्य प्रदेश सरकार ने उद्योगों को श्रम विभाग के निरीक्षण से बाहर कर अपनी किसी एजेंसी से निरीक्षण कराने अपनी मर्जी से कार्यदिवस, शिफ्ट लगाने के साथ मजदूरों के काम पर रखने और निकालने का अधिकार दे दिया है। सेन्टर आफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (सीटू )ने कहा है कि इससे मजदूरों के लिये मध्य प्रदेश में पूरी तरह जंगल राज मुकम्मल हो जावेगा।
विज्ञप्ति में सीटू प्रदेश महासचिव प्रमोद प्रधान ने 5 मई को किये गये इन निर्णयों को वापस लेने की मांग करते हुये कहा है कि यदि सरकार इन्हें वापस नही लेगी तो मजदूरों कर्मचारियों को सडकों पर उतर कर इसका विरोध करना पडेगा। श्री प्रधान ने कहा कि मुख्यमंत्री उद्योगपतियों के प्रतिनिधियों से चर्चा कर मजदूरों के हकों पर कुठाराघात करने के रोज निर्णय कर रहे है, लेकिन मजदूर संगठनों से चर्चा करने के लिये उनके पास समय नही है। सीटू महासचिव ने कहा कि बुनियादी श्रम कानूनों में जो बदलाव किये जा रहे है वे सब अंर्तराष्ट्रीय श्रम संघ(आई.एल.ओ.)में पारित प्रस्तावों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि बिना मजदूर संगठनों से चर्चा किये ऐसा परिवर्तन करना अब तक के मान्य त्रिपक्षीयता के सिद्धांत को भी तोडता है।
प्रमोद प्रधान ने कहा है कि कोरोना महामारी के चलते करोडों करोड मेहनतकशों की बदहाली सबने देखी है। इसे ठीक कर उसकी पुनरावर्ती रोकने के लिये सरकार को कानूनी ताना बाना मजबूत करने के साथ अपनी कल्याण योजनाओं के प्रभावी अमल हेतु कदम उठाने चाहिये। लेकिन सरकार श्रम कानूनों को ध्वस्त कर ऐसा वातावरण बना रही है जिससे नियोजकों का श्रमिकों के प्रति कोई वैघानिक दायित्व ही नही बचेगा। सीटू ने मुख्यमंत्री से पूछा है कि जब श्रम कानून है तब मजदूरों की यह दुर्दशा हो रही है तो जब इन्हें आप समाप्त कर रहे है तो क्या हालात बनेगी ?
प्रमोद प्रधान
महासचिव