*कंपनियों के क़र्ज़ माफ़ और आदिवासियों - मजदूरों के लिए भूख का तीखा विरोध किया*
*_अन्य राज्यों मे फंसे हजारों प्रवासी मजदूरों को घर लाने और सब के लिए राशन की मांग; भरे हुए गोदाम खोलने की मांग, अनाज से सैनीटाइज़र बनाने का विरोध_*
_“प्रवासी मजदूरों को 1800 रु प्रति व्यक्ति तक खर्च करना पड़ रहा है घर वापस आने; अधिकाँश के पास पैसे नहीं; अभी तक वापसी के लिए कोई व्यवस्था नहीं”_
7 मई, 2020, बड़वानी: आज हज़ार से ज्यादा रोष भरे आदिवासी बडवानी ज़िला मुख्यालय पहुँच कर लॉक डाउन से बने परेशानियों और अव्यवस्थाओं के बारे में शिवराज और मोदी सरकार को आड़े हाथ लिए l मौजूद आदिवासी किसान मजदूरों के अनुसार, अनियोजित लॉकडाउन के कारण सामने आ रही परिशानियों को देखते हुए यह कदम उठाने के लिए मजबूर होना मजबूर होना पड़ा है | आदिवासियों को शहर के बाहर नाके पर रोका गया और कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक वहीँ उन पर संवाद किये l जागृत आदिवासी दलित संगठन द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को प्रदेश के बाहर फंसे हजारों लोगों को निशुल्क रेल और बस व्यवस्था से वापस लाने, सभी को प्रति व्यक्ति प्रति माह दुगुना अनाज सहित 1 किलो दाल और ½ किलो तेल का राशन देने, ठप पड़े स्वास्थ्य सेवाओं में सुधर की मांग रखते हुए ज्ञापन सौंपा गया | प्रदेश के सीमाओं पर रोके गए अन्य राज्यों के और प्रदेश के अन्य जिलों के हजारों मजदूरों को सम्मान के साथ घर पहुँचाने की भी मांग की गई | बिलाती बाई सुलिया ने सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि “भूखे लोगों के अनाज से सरकार सैनीटाइज़र बनाने जैसे घिनौना योजना बना रही है | सरकार दारु बनाने वाले फक्ट्रियो से क्यों नहीं बनवाती सैनीटाइज़र?! प्रधान मंत्री के पास 20 हज़ार करोड़ रु से अपना घर और कार्यालय बनाने का पैसा है, राशन पहुँचाने के लिए नहीं?” । लॉकडाउन के कारण खेती के महत्वपूर्ण सीजन एवं कमाई के समय पर लोगो की आमदनी पूरी तरह रुक गई है| राशन सभी पर्याप्त मात्रा में न मिलने के कारण, एवं सभी लोगो को राशन नहीं मिलने के कारण लोगो की मजदूरी की कमाई भी ख़त्म हो चुकी है | वालसिंह सस्त्या ने कहा कि “ज़रूरत से 4 गुना ज्यादा भरे हुए गोदामों को खोल कर सभी के लिए प्रति माह 10 किलो अनाज के साथ 1 किलो दाल और तेल देना चाहिए, क्योंकि लोक डाउन से उत्पन्न भूखमरी अगले कई महीनो तक रहेगी l” नासरी बाई निंगवाल ने सरकार के ऊपर सवाल उठाते हुए पुछा, “लॉकडाउन करने से 10 दिन सबको खबर मिलनी चाहिए थी, जो बहार है, घर चले जाए, जो गाँव में है बहार न जाए | लोगो को पैदल चलने पर मजबूर कर दिया है ! लोग घर आने के रास्ते भूख से मर रहे है, किसकी ज़िम्मेदारी है?! करोना के नाम पर देश को गुलाम मत बनाओ!”
आदिवासियों ने कहा कि गुजरात और महाराष्ट्र में हमारे हजारों लोग अभी भी फंसे हैं । सरकार के पास ट्रेन के कोई कमी नहीं हैं, तो अभी भी वापस लाने के लिए कोई व्यवस्था क्यों नहीं की गई है । निजी वाहन कर लौटने वालों को 1100 से 1800 रु प्रति व्यक्ति खर्च लगा है, जिस से उनकी पूरी कमाई खत्म हो चुकी है l हरसिंह जमरे के अनुसार, “जब सरकार विदेशों से लोगो को हवाई जहाज में ला सकती है, समपन्न घरों के बच्चो को कोटा से अपने घर पहुंचा सकती है, तो देश को चलाने वाले मजदूरों को गुजरात से मध्य प्रदेश नहीं पहुंचा पा रही?”
इस समय सामान्य बीमारियों के लिए कोई स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं है | प्रदेश में गैर-कोरोना संक्रमित मरीज अभी स्वास्थ्य सेवाओं से पूरी तरह से वंचित हो चुके है | इसमें मलेरिया, कैंसर एवं टीबी जैसी बीमारियाँ शामिल है, जिनमे समय पर इलाज एवं दवाइयों का मिलना बहुत ज़रूरी है | सरकारी व्यवस्था के अभाव में लोगो को प्राइवेट अस्पताल में इलाज के लिए लूटा जा रहा है | युद्ध स्तर पर हर प्राथमिक और सामूदायिक स्वस्थ केंद्र मे सभी ज़रूरी दवाई, जांच, और एम्ब्युलेन्स की व्यवस्था एवं सभी ज़िला और सिविल अस्पतालों में कम से कम दस लोगों के लिए आईसीयू की व्यवस्था सुनिश्चित करने की मांग की गई |
जिला कलेक्टर द्वारा लोगों के द्वारा उठाई मांगों को संज्ञान में लेते हुए 3 दिनों के अन्दर सभी मांगो का निराकरण करने का आश्वासन दिया गया है |