मजदूरों के साथ रेल हादसा ये मौत दुर्घटना नहीं हत्या है 

ये मौत दुर्घटना नहीं हत्या है 
----------------------------------
रेल लाइन पर ट्रेन से कटकर मजदूरों की मौत को दुर्घटना मानना ठीक नहीं है l यह हत्या है l जिसके लिए  केंद्र - राज्य सरकारों के बीच संवादहीनता तालमेल ना होंना ,कुव्यवस्था और कुप्रबंध जिम्मेदार है l 45 दिनों के बाद भी प्रवासी मजदूरों के सम्बंध में कोई ठोस नीति ना बनाना सरकार की असफलता है l प्रवासी मजदूरों के बारे में हर राज्य सरकार अलग अलग रवैया अपना रही है जिसके कारण भ्रम की स्थिति बनी हुई है l कर्नाटक सरकार की मंशा  मजदूरों को बंधुआ बनाने की है तो यूपी सरकार सारे श्रम कानून स्थिगित कर मजदूरों के शोषण की नई कहानी लिखने जा रही है l


गोपाल राठी


इस दर्दनाक हादसे मैं अपने अपने ढंग से लोग विश्लेषण कर जो तर्क दे रहे हैं उन तर्कों को गंभीरता से लेना लाजिमी है अपनी फेसबुक वॉल पर इस संदर्भ में स्वामी त्रिपदा नंद कसक का शक कुछ अर्थों में बिल्कुल सटीक बैठता है स्वामी ने  हादसे को  गहरे षडयंत्र की उपमा दी है उनके अनुसार


*गहराषड़यंत्र है*


ट्रैक पर बोल्डर हैं
आजू बाजू समतल जमीनें हैं
ट्रैक पर सोने की थ्यौरी  
बनावटी है


ग्रामीण लोग समूह यात्राओं में
विश्राम के समय सभी एकसाथ 
कभी नहीं सोते, कुछ लोग बीड़ी
पीते हुए चौकसी में रहते हैं


रोटियां जिस ढंग की हैं वैसी नहीं
बनाते हैं और इतने बड़े हादसे में
सभी रोटियां बिना टूटे फूटे रखी हैं


इन रोटियों को ठीक से देखें
इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद
ये ताजी ताजी रोटियां झोलों
से बाहर निकलकर 
एक लाइन में ट्रैक पर बैठ गईं ?


*इस मनगढंत कहानी में*


तथ्यात्मक  विसंगतियां
सुस्पष्ट हैं

ट्रैक पर बड़े बड़े बोल्डर हैं
और आजू बाजू दोनों साइड
समतल है

ट्रैक पर चलने लायक हालत 
नहीं है वे लोग पगडंडियों पर
होंगे

ग्रामीण व्यवस्था में सामूहिक यात्राओं
के समय बुजुर्ग बीड़ी या हुक्का पीते हुए
चौकसी में जागते रहते हैं, सभी के सभी
एकसाथ कभी भी नहीं सो जाते हैं, यही बात
इस बनावटी कहानी को फेल करने के लिए पर्याप्त आधार है

ट्रैक पर जो रोटियां रखी हुई हैं
वे ग्रामीण परिवारों में बननेवाली
रोटियां नहीं हैं और इतनी बड़ी
दुर्घटना में रोटियां बिना टूटे फूटे
कैसे बची रह सकीं, और यह भी
कि आसपास के कोई पशु पक्षी
उन्हें क्यों नहीं ले गए ?

ट्रैक जिस तरह का पथरीला व
ऊबड़खाबड़ है,  उस पर  न तो
कोई चल सकता है  और  न ही
सो सकता है
हां, यह हो सकता है कि वे लोग
ट्रैक का सहारा लेकर आजूबाजू
की पगडंडियों पर चल रहे हों और
विश्राम भी समतल भूमि पर कर रहे हों
कथानक,  प्रथम दृष्टया बनावटी  है !


स्वामी त्रिपदा नंद


इस भयानक मंजर की सामने आने के बाद यह तय शुदा है है कि मजदूरों की मौत संस्थागत हत्या है


वही कुछ लोगों का यह तर्क है यह मामला अत्यंत गंभीर एवंंं दुखदाई सरकार कितनी भी संवेदनाएं प्रकट करें पर यह सरकार की नाकामी और बद इंतजामी को प्रमाणित करता है