महाराणा प्रताप के साथ  हकीम खां सूरी को भी याद रखना चाहिए

महाराणा प्रताप के साथ 
हकीम खां सूरी को भी याद रखे 
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हकीम खां सूरी (हाकिम सोज खान अफगान के रूप में भी जाना जाता है) राणा प्रताप के तोपखाने का प्रमुख एक अफगान योद्धा था, और 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप की तरफ से मुगलों से युद्ध किया था. 


इस युद्ध में उन्होंने अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता और विश्वासों को बनाए रखने के लिए मुगलों से लड़ाई लड़ी. उसके इस्लाम का अनुयायी होने के बावजूद, अपने मज़हबी भाइयों के खिलाफ मुगलों से युद्ध किया. इस तरह मेवाड़ की स्वतंत्रता और सम्मान को बनाए रखने के लिए, अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने की लड़ाई में अपने प्राण दिए जाने में वह प्रथम था.


हल्दीघाटी के युद्ध को गलत तरीके से हिंदू और मुसलमानों के बीच संघर्ष के रूप में जाना जाता है, जबकि इस मामले में ऐसा नहीं है. दोनों सेनाओं के हिंदुओं और मुसलमानों का मिश्रण था. हाकिम खान सुर ने राणा प्रताप के लिए युद्ध किया था; वही पर अकबर की सेना का प्रमुख जयपुर के राजा मान सिंह राजपूत था.


हकीम खां सूरी की समाधि हल्दीघाटी में है, जहां हर साल यादगार सवरूप समारोह हल्दीघाटी में आयोजित किया जाता है. महाराणा उदय सिंह के शासनकाल के दौरान, कर्बला योद्धा के वंशजों में से एक हकीम खां सूरी मेवाड़ आया था. उन्होंने बाद में महाराणा प्रताप की सेना के एक कमांडर (सेनापति) की हेसियत से सेना में शामिल की और हल्दी घाटी के युद्ध में बहादुरी से लड़े. 


हकीम खां सूरी और महाराणा प्रताप ने अकबर और राजा मान सिंह के विरुद्ध हल्दी घाटी में युद्ध किया. हल्दीघाटी की लड़ाई साम्राज्यवादी और विस्तारवादी मनसूबे के खिलाफ लड़ी गई थी, और 
यह इस तथ्य को स्थापित करता है यह युद्ध सांप्रदायिक नहीं था.


हकीम खान राणा प्रताप के विश्वास योग्य व्यक्ति में से एक था और और उसकी मदद से राणा प्रताप युद्ध भूमि से जीवित बचने निकला था. यह असाधारण वीरता, बहादुरी, त्याग, ईमानदारी, विश्वास और कर्तव्य का एक अप्रतिम उदाहरण है.


उनके बलिदान धार्मिक और सांप्रदायिक विचार से ऊपर उठकर सिद्धांतों, असंदिग्ध निष्ठा और भक्ति से मानव धर्म की प्रतिबद्धता का एक अनूठा उदाहरण है.


हाकिम खान सुर के सम्मान में एक स्थाई पुरस्कार प्रतिवर्ष राष्ट्रीय एकता के लिए महाराणा मेवाड़ चैरिटेबल फाउंडेशन, उदयपुर द्वारा स्थापित किया गया हैं जो एक राष्ट्रीय पुरस्कार है


गोपाल राठी