जब एक पूर्व प्रधानमंत्री को फुटपाथ पर डेरा जमाना पड़ा

1993 की बात है मैं घर से डीटीसी की बस में सवार होकर संसद भवन जा रहा था कि अचानक मेरी सीट के पास बैठे दो व्यक्तियों ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री को पंजाबी में मोटी-मोटी गालियां देनी शुरू कर दी। यह सुनकर मुझे गहरा झटका लगा। यह दोनों सज्जन देश के पूर्व प्रधानमंत्री पर इस बात के लिए नाराज थे कि वह दो दशक तक केन्द्र में मंत्री रहने के बावजूद राजधानी में अपना एक कमरा तक नहीं बना पाया।


बातचीत करने पर यह पता चला कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री गुलजारी लाल नन्दा का सामान उनके मकान मालिक ने किराया अदा न करने के कारण फुटपाथ पर फेंक दिया है और नन्दा जी फुटपाथ पर जीवन गुजार रहे हैं। खबर धमाकेदार थी इसलिए मैं तुरन्त दक्षिणी दिल्ली की एक काॅलोनी की ओर रवाना हो गया। जब मैं मौके पर पहुंचा तो खबर सही निकली। फुटपाथ पर नन्दा जी का संक्षिप्त सा सामान रखा हुआ था और नन्दा जी एक चारपाई पर बैठे चाय पी रहे थे। नन्दा जी क्योंकि मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते थे इसलिए मैंने बातचीत शुरू कर दी। पता चला कि पैसे न होने के कारण नन्दा जी दो महीने का अपने कमरे का किराया मकान मालिक को नहीं दे पाए थे इसलिए उनका सामान फुटपाथ पर फेंक दिया। देश की राजधानी में इस पूर्व प्रधानमंत्री के सिर छुपाने का कोई अन्य ठिकाना नहीं था इसलिए गत तीन दिन से फुटपाथ पर जीवन काट रहे थे।


खबर धमाकेदार थी इसलिए मैंने उसे पंजाब केसरी में प्रकाशित करवा दिया। इस सनसनीखेज समाचार को दूसरे दिन कई अन्य अंग्रेजी समाचारपत्रों ने भी जब छापा तो संसद में हलचल मच गई। उस दिन जब मैं घर पहुंचा तो नन्दा जी ने मुझे टेलीफोन करके खूब डांटा और कहा कि मुझे उनकी मुफलिसी का मजाक उड़ाने का क्या हक है? मैं नन्दा जी के प्रति काफी श्रद्धा रखता हूं। इसलिए मैं उनकी डांट को चुपचाप सुनता रहा। संसद में हंगामे के बाद भारत सरकार ने उनके लिए वैकल्पिक आवासीय व्यवस्था करने की पेशकश की जिसे स्वाभिमानी नन्दा जी ने ठुकरा दिया। बाद में उन्होंने अपना सामान किसी दोस्त के घर में रखा और खुद अपनी बेटी के पास अहमदाबाद चले गए।


उल्लेखनीय है कि गुलजारी लाल नन्दा मूलतः पंजाबी थे मगर एक श्रमिक नेता के रूप में उनका अधिकांश जीवन गुजरात में गुजरा था। नन्दा जी 2 बार देश के कार्यकारी प्रधानमंत्री रहे और दो दशक तक केन्द्र में मंत्री रहे। मगर आदमी बेहद ईमानदार थे इसलिए अपने लिए वो राजधानी में एक कमरा तक नहीं बना पाए। इसका दुष्परिणाम उन्हें बुढ़ापे में भुगतना पड़ा। गुजरात में ही नन्दा जी का निधन गुमनामी की हालत में उनकी पुत्री के घर हुआ।


#मनमोहन शर्मा