ये श्रमशक्तियां  अभिशप्त तो नहीं भटकते रहने को ?

यह सिर्फ चप्पलें नहीं है 
दोस्तों 
भटकते,भूखे, परेशान, वंचितों  के पद चिन्ह है ।
जरा गौर से देखो 
ये क्या 
इंसानियत के मुख पर 
बदनुमा दाग़ नहीं?
ये श्रमशक्तियां  अभिशप्त तो नहीं
भटकते रहने को ?
हम कैसे कहे कि ये 
हम जैसे ही है
हमने किया क्या इनके लिए
सिर्फ झूठी संवेदना
मक्कारी, फरेब,
कैसे भरेगा 
इनका पेट
  कैसे मिलेगी इनको छत
 ये रीता, राधा, सलमा, सीता,
बशीर, नजीर या 
रहमान नहीं है 
दोस्तों 
ये एक ज़िंदा सपने है 
 कैसे कोई दफन कर सकता है इन्हे
गर ये  ना रहे
हम कहां होंगे
कभी सोचा है???


----Renu Prakash 


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