विश्व स्वास्थ्य दिवस

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है।आज जब दुनिया के दो सौ से भी ज्यादा देश कोरोना की वैश्विक महामारी से दो-चार है, इस दिन की सार्थकता हमेशा से ज्यादा है। स्वस्थ रहने के लिए इस आपदा-काल में क्या-क्या करना और क्या-क्या नहीं करना है, यह तो हम सुन-समझ-कर ही रहे हैं। इसके इतर भी हमारी संस्कृति ने स्वस्थ और विषाणुमुक्त रहने के कुछ शाश्वत उपाय सुझाए हैं। कहते हैं कि अगर आंगन में तुलसी का पौधा, सहन में पीपल और पिछवाड़े नीम के वृक्ष है तो कोई बीमारी आपको छू भी नहीं सकती। पीपल और नीम तो शहरों में क्या, गांवों में भी अब कम दिखते हैं। तुलसी को हमने अबतक ज़रूर संभाल रखा है - गांवों में आंगन में और शहरों में घर की बालकनी और छतों पर गमलों में। तो देशवासियों के स्वास्थ की कामना के साथ स्वस्थ जीवन की हमारी चिरसंगिनी तुलसी के लिए एक छोटी-सी कविता !


इन अकेले, उदास, काले दिनों में
घर में तुलसी का बिरवा
जैसे घर पर किसी बुजुर्ग का हाथ
जैसे मां के आंचल की छाया
जैसे मिट्टी से उठती
एक भीनी सी खुशबू
जैसे उमस भरी सुबह में
ताज़ा हवा का स्पर्श 
जैसे किसी उदास शाम
दरवाजे पर खड़ी
किसी चिरप्रतीक्षित अपने की
सहज, सरल मुस्कान


घर के आंगन में तुलसी 
जैसे घर के तमाम रिश्तों में
बिछी हुई कोई अदृश्य डोर
जैसे कैसे भी उलझे दिनों में
एक उजली, मासूम, निश्छल हंसी
जिसके बारे मे इन दिनों
लोग बात तक नहीं करते !


ध्रुव गुप्त