विष्णु नागर की अपील 

मेरे वे रिश्तेदार, वे मित्र,वे परिचित-जो आज हत्यारी विचारधारा के साथ हैं-अन्यथा बहुत अच्छे इनसान हैं।उनसे मिलना हमेशा सुखकर रहा है।उनसे मुझे बहुत प्रेम और सम्मान मिला है।मैंने जितना दिया नहीं,उससे ज्यादा उनसे मुझे मिला है।उनकी और समस्याएँ रही होंगी लेकिन मैं जानता हूँ कि उनके पैर से चींटी भी मर जाए तो उन्हें दुख होता है।वे अपनी नजर के सामने मुर्गी को काटते भी देख नहीं सकते।किसी धर्म का हो, जाति का हो,उस पर मुसीबत पड़ती है तो उसके साथ वे मानवीय व्यवहार करते हैं।कुछ तो व्यक्तिगत स्तर पर उनका हक दिलाने के लिए आवाज़ भी उठाते हैं।ऐसे लोगों का हत्यारी विचारधारा के साथ होना मुझे रोज गहरी तकलीफ़ से भरता है।वे सोचते हैं कि वे जिन दूसरे धर्मों के लोगों को जानते हैं,वे तो अच्छे हैं मगर बाकी सब जानवर हैं।ऐसा नहीं है मित्रो।सबसे,आपसे भी गलतियाँ होती हैं,कुछ न कुछ अंधविश्वास सभी में होते हैं,अगर आपको कोई ऐसा लगता है तो उसके बारे में अपने बेटा-बेटी,भाई -बहन आदि के प्रति,जितनी सहानुभूति से सोचते हैं,जरा बहुत कोशिश करके,उसी तरह सोचने की कोशिश कीजिए।


मैं जानता हूँ मेरे कहनेभर से आप नहीं बदलेंगे।मैंने ऐसी कोशिश पहले की भी है।फिर भी मुझे इतना प्रेम और इज्ज़त देनेवाले इन सभी से विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि हत्यारी विचारधारा के साथ होना भी इनसान होने से नीचे गिर जाना है।आप किसी को मारें न मारें,आपके अंदर जो नफरत कूट कूट कर भर दी गई है, वह आपको भी उस जुर्म का उतना ही भागीदार बना रही है,जितना उनको,जो सड़क पर या कहीं और हत्या या बलात्कार या कोई और ऐसा जुर्म कर रहे हैं।जो चुप रहते हैं या घर में बैठकर कहते हैं कि अच्छा हुआ,इनके साथ और भी यही होना चाहिए, वे भी हत्यारों के संगीसाथी हैं। जो अन्य धर्म के दुकानदार से सब्जी या फल न खरीदने का कौल एक विडिओ के आधार पर उठा चुके हैं, वे भी उस निर्दोष की हत्या के लिए अपने अद्श्य हथियारों की धार तेज कर रहे हैं।जो छोटे- छोटे झूठों पर विश्वास करके घर बैठे व्हाट्सएप या फेसबुक से नफरत की आँधी बहा रहे हैं और खुश हैं,वे अगर धर्मपरायण हैं तो सोचें कि उनका ईश्वर उन्हें इसकी सजा कभी न कभी, किसी न किसी रूप में देगा,भले ही उसका नाम खुदा या कुछ और हो।आज जिन्हें नफरत की आँधी में बहना बहुत सुहावना लग रहा है,सोचें कि दूसरे वक्तों की तरह यह वक्त भी बदलेगा तो उनकी संतानें या उनकी संतानों की संतानें क्या उन्हें अपने दादा-दादी या नाना-नानी को प्रेम और आदर के साथ याद करेंगी?उन्हें याद रखना चाहिए कि जो चरित्र शायद पौराणिक या कल्पित हैं मगर जिनके वास्तविक होने पर आपका विश्वास है,उन्हें वे क्या आज भी आदर से देखते है? कहते हैं कि रावण विद्वान था तो क्या इस कारण आप उसे राम के बराबर दर्जा देते हैं?मुझे फिक्र है कि भले मेरी आनेवाली पीढ़ियाँ मुझे भूल जाएँ मगर कोई कभी उन्हें याद दिलाए तो उन्हें मेरी वजह से शर्मिंदगी के गर्त में न गिरना पड़े,ऐसी शर्मिंदगी के गड्ढे में जिससे वे निरपराध कभी निकल न सकें।यही अपने होने के नाते आपसे भी चाहता हूँ।नाथूराम गोडसे को कितनी ही पूजा करो,वह कभी भी महात्मा गांधी की जगह नहीं ले सकेगा।


बाकी आप पर निर्भर है।सोच सकते हों तो सोचें।मैं यह बात उनसे इसलिए कह रहा हूँ कि मैं अभी भी  उनसे प्रेम और लगाव रखता हूँ और उनसे जो मिला है मुझे जीवनभर उसे कैसे यूँ ही भुला सकता हूँ।एक यही अधिकार है मेरा,बाकी क्या है?


आप इस पोस्ट को लाइक न करना चाहें,करें।आप इसे पढ़कर तत्काल बदल जाएँगे,यह अपेक्षा भी मैं नहीं कर रहा हूँ।मूर्ख हूँ मगर इतना नहीं।बस जरूरत समझें तो सोचना।इनमें से बहुतों का मैं बुजुर्ग हूँ,इस नाते भी अपील है बस।


@ Vishnu Nagar