सरकार द्वारा CAA, NRC, NPR विरोधी प्रदर्शनकारियों को धमकाने और गिरफ्तार करने के लिए UAPA और औपनिवेशिक देशद्रोह कानून के अवैध इस्तेमाल की कड़ी निन्दा*

*हम भारत के लोग*


*सरकार द्वारा CAA, NRC, NPR विरोधी प्रदर्शनकारियों को धमकाने और गिरफ्तार करने के लिए UAPA और औपनिवेशिक देशद्रोह कानून के अवैध इस्तेमाल की कड़ी निन्दा*


विरोध का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है। जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद, जामिया के छात्र मीरान हैदर और सफूरा जरगर और भारत के दूसरे प्रदर्शनकारियों को फसाया जा रहा है और इन्हें असमान नागरिकता कानून के विरोध में किए गए कानूनी प्रदर्शन के लिए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।


*राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट और लॉकडाउन के दौरान सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाना केंद्र सरकार के अलोकतांत्रिक चरित्र को उजागर करता है।*


नई दिल्ली, 23 अप्रैल 2020 | केंद्र सरकार द्वारा  एनपीआर, एनआरसी और सीएए को लागू करने के गैरकानूनी प्रयासों के विरोध में राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक विरोध प्रदर्शन के साथ 100 से अधिक सिविल सोसाइटी संगठनों का एक मंच, "हम भारत के लोग" के द्वारा संयुक्त रूप से  एक बयान जारी किया गया है जिसपर सभी के हस्ताक्षर हैं।


'हम भारत के लोग' से जुड़े हस्ताक्षरकर्ता सरकार के इस कदम की कड़ी निंदा करते हैं जिसमें जेएनयू के पूर्व छात्र डॉक्टर उमर खालिद, जामिया के छात्र मीरान हैदर और सपुरा जरगर समेत अन्य छात्रों और युवा नेताओं पर आरोप लगाए गए हैं और उन्हें गिरफ्तार किया गया जिन्होंने दिल्ली सहित देशभर में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लिया। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि उन पर यूएपीए, गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए हैं।


हमें यह याद रखना चाहिए कि एनपीआर, एनआरसी और सीएए के खिलाफ प्रदर्शनकारियों ने भारत के संविधान द्वारा  प्रदान किए गए अपने मौलिक अधिकारों का उपयोग करते हुए विरोध किया। इसलिए यूएपीए और औपनिवेशिक सेडिशन कानून को लागू करना स्वाभाविक रूप से अवैध है। यह नागरिकों के खिलाफ सरकार के अवैध कृतियों का प्रयोग है।


यह स्पष्ट है कि सरकार सीएए, एनआरसी एनपीआर विरोधी आंदोलनों को कुचलने के प्रयास में प्रदर्शनकारियों को डराने की कोशिश कर रही है। ऐसा करते हुए सरकार भूल रही है कि यह गांधी की भूमि है जहां सत्याग्रह अभी भी जीवित है। सरकार की कार्यवाही चाहे कितनी ही क्रूर क्यों ना हो प्रदर्शनकारी शांति और अधिक दृढ़ संकल्प के साथ अपनी आवाज़ बुलंद करते रहेंगे।


यह देखकर आश्चर्य होता है कि जब पूरा देश COVID-19
के कारण होने वाली स्वास्थ्य आपात स्थिति से निपटने के लिए एकजुट हो गया है जिसके परिणाम स्वरूप राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन लागू है, ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार नागरिकों के जीवन और आजीविका को बचाने पर ध्यान देने की बजाय कार्यकर्ताओं को उत्तेजित कर आंदोलनों को कुचलने के प्रयास की साजिश कर रही है। यह स्पष्ट है कि सरकार लोकतंत्र विरोधी है और इस अभूतपूर्व आपातकाल में भारत के नागरिकों की सेवा करने के बजाए अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए अधिक चिंतित है।


इसलिए हम मांग करते हैं कि:


1. दिल्ली पुलिस को स्पष्ट करना चाहिए कि क्यों और किन आधार पर इन कार्यकर्ताओं पर  यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं।


2. यदि ऐसा है तो इस तरह के हास्यास्पद और दोषपूर्ण आरोप जोकि स्पष्ट रूप से कार्यकर्ताओं को डराने और उनमें असंतोष व्याप्त करने के लिए  किए गए हैं को तुरंत हटाया जाना चाहिए।


3. जो लोग वास्तव में सांप्रदायिक बयान देने के जिम्मेदार है जिनकी वजह से हिंसा हुई और मानव जीवन की क्षति हुई उन्हें कानून के अनुसार सज़ा दी जानी चाहिए।


राज्य सत्ता के ऐसे गंभीर दुरुपयोग के समय हम प्रत्येक नागरिक और प्रत्येक राजनीतिक दल से अपने लोकतंत्र की रक्षा के लिए एक साथ खड़े होने का आह्वान करते हैं। हम मीडिया से सच्चाई के साथ खड़े होने के लिए कहते हैं। हम मांग करते हैं कि केंद्र सरकार इस उत्पीड़न को रोके और दिल्ली पुलिस शांतिपूर्ण व लोकतांत्रिक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ लगाए गए इन आरोपों को तुरंत वापस ले।


*हस्ताक्षरकर्ता*


अंजली भारद्वाज
अविक साहा
फहद अहमद
फराह नकवी
गणेश देवी
हर्ष मंदर
कामायनी स्वामी
कविता कृष्णन 
किरण विस्सा
लारा जेसानी
माधुरी कृष्णास्वामी
मीरा संघमित्रा
नदीम खान
तीस्ता सीतलवाड़
योगेन्द्र यादव