सामाजिक न्याय के मसीहा वीपी सिंह

श्री वी पी सिंह जी की ये पंक्तियां मुझे बड़ी अपील करती है कि-


मुफ़लिस से
अब चोर बन रहा हूँ मैं
पर
इस भरे बाज़ार से
चुराऊँ क्या
यहाँ वही चीजें सजी हैं
जिन्हें लुटाकर
मैं मुफ़लिस बन चुका हूँ।


इन पंक्तियों में माण्डानरेश से प्रधानमंत्री तक , सम्मान से गालियों तक के सफ़र की टीस और दर्द की अभिव्यक्ति है। 
आखिर क्या शख्सियत थी उनकी। फकीर से लेकर कलंक तक के उपमान गढ़े गए उनके लिए। लेकिन एक इंच भी विचलित नही हुए अपने उसूल को जुनून के साथ बचाये रखने में।


1990 को गोरखपुर के तमकुही कोठी मैदान में मांडा के राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह की सभा होने वाली थी। आरक्षण लागू होने बाद सामाजिक न्याय के मसीहा का पहला और मेगा शो गोरखपुर में हुआ। वीपी सिंह ने उस रैली में कहा,
" भूख एक ऐसी आग है कि जब वह पेट तक सीमित रहती है तो अन्न और जल से शांत हो जाती है लेकिन जब वह दिमाग तक पहुँचती है तो क्रांति को जन्म देती है। इस पर ग़ौर करना होगा। ग़रीबों के मन की बात दब नहीं सकती और अंततः उसके दृढ़ संकल्प की जीत होगी।’ 
श्री वी पी सिंह ने कहा था,
" ग़रीबों की कोई बिरादरी नहीं होती। दंगों में मारे जाने वाले लोग हिंदू और मुसलमान नहीं, हिंदुस्तान के ग़रीब लोग हैं। ग़रीबों के साथ हमेशा अत्याचार होते रहे हैं। इस शोषण अत्याचार को बंद करके समाज के पिछड़े तबक़े के लोगों को ऊपर उठाना होगा।"


विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पिछड़े वर्गों के सशक्तिकरण के लिए जो क्रांति कर दिया, उसकी अनुगूँज उत्तर भारत में तीन दशक तक बनी रही। वंचित तबक़े के हज़ारों युवा आईएएस, आईपीएस और पीसीएस सहित विभिन्न न्यायिक सेवाओं में पहुँचे। सरकारी नौकरियों, विश्वविद्यालयों शिक्षण संस्थानों में तेज़ी से पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी बढ़ी। इंजीनियरिंग कॉलेजों और मेडिकल कॉलेजों में बड़े पैमाने पर पिछड़े वर्ग के बच्चों को प्रवेश मिलने लगा जिससे अवसरों का उचित बँटवारा नज़र आने लगा। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने वह कर दिखाया, जिससे यह मुहावरा बेमानी साबित हो गया कि पाँचों अँगुलियाँ बराबर नहीं होतीं और उन्होंने इस बात की नींव रख दी कि दृढ़ इच्छाशक्ति और ईमानदार प्रयास किया जाय तो पांचों उंगलियां बराबर किया जा सकता है। 
आज की सामाजिक, राजनैतिक परिस्थिति में जंहा मन्दिर-मस्ज़िद, हिन्दू-मुस्लिम, धार्मिक हिंसा नफरत का वातावरण चारों तरह व्याप्त है।
श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह की एक और कविता अनायास याद आ रही है ...
भगवान हर जगह है
इसलिये जब भी जी चाहता है
मैं उन्हे मुट्ठी में कर लेता हूँ
तुम भी कर सकते हो।


हमारे तुम्हारे भगवान में
कौन महान है
निर्भर करता है
किसकी मुट्ठी बलवान है।
!
डॉ यू पी सिंह