नर्मदा बचाओ आंदोलन के महेश्वर बांध प्रभावितों के 23 साल के संघर्ष की ऐतिहासिक जीत !


निजीकृत महेश्वर परियोजना का विद्युत क्रय अनुबंध (PPA) रद्द!!
सरकार ने माना बिजली का दाम 18 रु/यूनिट होने से परियोजना सार्वजनिक हित में नहीं।
जनता के 42,000 करोड़ रु लुटने से बचे


नर्मदा नदी पर बनाये जा रहे महेश्वर बांध से 400 मेगावाट बिजली प्रस्तावित थी।
निजीकरण के तहत 1994 में कपड़ा बनाने वाली कंपनी एस कुमार्स को दिया गया।
सरकार ने जनविरोधी समझौता किया कि बिजली बने या न बने, बिके या न बिके फिर भी करोड़ों रु प्रतिवर्ष 35 साल तक निजी कंपनी को दिये जाते रहेंगे।


नर्मदा बचाओ आंदोलन ने शुरू में ही सिद्ध किया कि बिजली बहुत कम व बहुत महंगी बनेगी।
बिजली का दाम बढ़ने से जनता की लूट होगी।
यह भी सिद्ध किया कि प्रभावित होने वाले 61 गांवों के 60,000 लोगों के पुनर्वास की व्यवस्था नहीं है।


प्रभावितों ने धरने, प्रदर्शन, अनशन, कानूनी करवाई सब किया। एस कुमार्स व सरकार ने आंदोलनकारियों को लाठी चार्ज, गिरफ्तारी, जेल दी। उनके खिलाफ मण्डलेश्वर, खरगोन, भोपाल, मुम्बई में सैकड़ों केस फ़ाइल किये।


आंदोलन ने परियोजनकर्ता के सैकड़ों करोड़ के घोटालों का पर्दाफाश किया। जिसके कारण एस कुमार्स ने अवमानना का केस लगाया पर अंत मे वह ही हारा।


भारत की सर्वोच्च संस्था नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की 1998, 2000, 2003, 2005, 2014 की पांच रिपोर्टों में महेश्वर परियोजना के सम्बन्ध  में गंभीर भ्रष्टाचार खुला।


IFCI ने कहा कि 106 करोड़ रु डायवर्ट कर दिये।
परियोजनकर्ता के डिफ़ॉल्ट पर म प्र सरकार को 102 करोड़ भरने पड़े।


आज मध्य प्रदेश में 30000 मिलियन यूनिट बिजली सरप्लस है, बाजार में 2.5 रु/यूनिट पर उपलब्ध है।
महेश्वर की 18 रु/यूनिट की बिजली न बिकने पर भी सरकार को 1200 करोड़ प्रतिवर्ष 35 साल तक निजी परियोजनकर्ता को देना पड़ता। इस जीत से जनता के ये 42,000 करोड़ रुपये बच गये हैं।


Alok agarwal