मप्र में नरक यात्रा


फर्क नही नरक और अस्पताल में - क्योंकि एमपी अजब है सबसे गजब है 


15 वर्षों तक एक ही व्यक्ति एक ही पार्टी सरकार रही


प्रदेश में आज जो शिक्षा स्वास्थ्य की हालत है वह कितनी शोचनीय है यह बताना मुश्किल है


राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में गत 15 वर्षों में जो अरबो रुपया आया - प्रशिक्षण, उपकरण और सेवाओं के नाम पर और बावजूद इसके जिला अस्पताल खुद आईसीयू में है बाकी पीएचसी और उपस्वास्थ्य केंद्र तो छोड़ ही दीजिये और सामुदायिक केंद्र तो भ्रष्टाचार और लापरवाही के संगठित अड्डे है ही


डॉक्टरों की कमी का रोना भारत सरकार रोती है तो मप्र की बात ही मत कीजिये


सिर्फ आशा के भरोसे चल रहे इस पूरे तंत्र को समझने की कोशिश करें जो ब्यूरोक्रेट्स द्वारा नियंत्रित है और डॉक्टर्स सिर्फ घरों में लैब्स, नर्सिंग होम और दवाई की दुकानें खोलकर बैठे है 


कल इंदौर के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी से बात हुई जिन्होंने कहा कि " डॉक्टर्स इस समय मे भाग गए और यह कोरोना की लड़ाई का सबसे बड़ा दुखद पहलू है "


मप्र में यूनिसेफ से लेकर तमाम संस्थाओं के कंसल्टेंट झोला उठाकर आंकड़ेबाजी में व्यस्त रहते है - सभी फर्जी MSW , MBA in Hospital administration में डिग्री कर बैठे डीपीएम और बीपीएम डॉक्टर्स, ब्यूरोक्रेट्स और राजनेताओं के दलाल है जो आशा चयन के भी ₹ 5000/- बेशर्मी से ले लेते है 


इस खेल में सब शामिल है और इसलिए हालात यह है कि 31 जिलों में आईसीयू में एक भी बेड नही है 


पीपीपी करके भी इसी सरकार ने देखा है - देवास में भंडारी अस्पताल वाले ने कितना लूटा था यह सबको मालूम है 


खनिज खनन से लेकर दवा सप्लाय के माफियाओं के साथ शामिल इन लोगों को क्या ही कहा जाये


भोपाल में स्वास्थ्य सचिवालय या स्वास्थ्य मिशन में दलालों की एक फ़ौज है जो सप्लाय चैन मैनेजमेंट का काम करती है, ये लोग आशा ट्रेनिंग के ठेके दिलाने से लेकर तमाम तरह के फर्जीवाड़े में एक्सपर्ट है 


इस बात से अंदाज लगाइए कि 70 से ज्यादा  लोग जिसमे प्रमुख सचिव भी शामिल थी कोरोना ग्रस्त थे और एक महंगे निजी अस्पताल में रहकर ठीक हुए और एम्स भोपाल ने ट्रीट करने से मना कर दिया - सनद रहे कि अभी 6 माह पूर्व एम्स के डाक्टर निदेशक, सुविधाएं और फेकल्टी ना होने के कारण अपनी मांग मंगवाने के लिए दिल्ली तक पैदल चलकर गए थे 


स्वास्थ्य मंत्रालय में 3 - 4 लोग बरसों से महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के नियंता बनकर बैठे है और सब वही के वही भाँग छानकर पी लेते है 


सरकार की गत 15 वर्षों में कोई प्राथमिकता ही नही रही और कुछ काम नही किया - शिवराज सरकार जीवन भर लॉक डाउन करें तो भी स्थिति नही सुधरेगी 


108 से लेकर तमाम योजनाओं में बड़े घपले हुए - चलो माफ़ किया पर लोग मर रहें है और आपके पास ढंग की 4 लैब नही है, आईसीयू में बेड नही है, आधे से ज्यादा मशीनें खराब पड़ी है, ब्लड बैंक से लेकर दवाई वितरण - जो आप हिमाचल से खरीद रहें थे , भी व्यवस्थित नही है - का क्या 


जनता को जवाब चाहिए - सिंहस्थ से लेकर दिखावटी पौधारोपण पर आपने करोड़ो खर्च किया कभी अस्पताल चले जाते हुजुरे आला


भगवान ना करें किसी और को कोरोना हो जाये और सरकारी अस्पताल में भर्ती करना पड़े


अभी भी कुछ जीवन मे पुण्य कमाने की इच्छा होतो जनता को सुविधा दो वरना आह का असर कही का नही छोड़ेगा - सत्ता से दूर रहकर बिलबिला लिए हो ना और जनता के  नकारने के बाद भी रुपयों के बल फिर आ गए हो - याद रखना यह बात


अपने भ्रष्ट अधिकारियों को बदलो जो स्वास्थ्य विभाग में सबको गधा घोड़ा और चौपाये समझकर इलाज कर रहें है  - सबसे ज्यादा पारदर्शी भ्रष्टाचार, निलंबन, बर्खास्तगी इसी विभाग में हुई पर इस सबके बाद भी अस्पताल नरक के द्वार है जहाँ मरने वाले को नोचने वाले पहरेदार बैठे है 


निजी अस्पतालों पर तो वैसे भी कोई बस नही है - सब बंद है, डॉक्टर्स घरों में है और मेडिकल कॉलेजेस का धंधा वाया व्यापमं फिर पनपेगा - जहाँ क्रोसीन देने की सुविधा नही वहां मेडिकल कॉलेज चल रहे है 


दुर्भाग्य यह है कि इस पूरे विधायक दल में एम्स के डॉक्टर्स भी है पर वे भी स्वार्थी बनें रहें और सत्ता सुख में लिप्त रहें - खेल करते रहें 


★ नरक यात्रा - ज्ञान चतुर्वेदी का व्यंग्यात्मक उपन्यास है पर अभी हालात उससे ज्यादा बिगड़ गए है अस्पतालों के l
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@  संदीप नाईक दादा की खरी खरी बात