कोरोना दोहे

कोरोना की मार से, दुनिया है भयभीत
अगर रहे घर में सभी, तब जायेंगे जीत


कोरोना से जंग में, दूरी इक हथियार
संकट समझो देश का, घर में बैठो यार


काम काज चौपट हुये, बंद हैं कारोबार
महल, अटारी बन गये, जैसे कारागार


निर्धन, बेघर न पिसें, मिले उन्हें आहार
भूखा कोई ना रहे, इतना हो उपकार


प्रकृति ने क्रुद्व हो, किया रूप विकराल
हम सबका कर्तव्य अब, धरा न हो कंगाल


सन्नाटा पसरा हुआ, कहता सब से आज
जीवन जीना है अगर, बदलो अब अंदाज़


चौतरफा फैला हुआ, कोरोना कोहराम
हमें बचाने आ गये, डॉक्टर बनकर राम


फ़र्ज़ हमारा मानना, उनकी नेक सलाह
घर से बाहर ना रहें, सिर्फ़ यही है राह


कोरोना की मार्फ़त, मिला कड़ा संदेश
धरा का दोहन न रुका, मिट जायेंगे देश


जा कोरोना की कसे, ठठरी बारम्बार
दो महीने से दूर है, पिया से उसका प्यार
("ठठरी कसना" बुंदेलखंड की एक आत्मीय गाली है)


बच्चों बिन सूना पड़ा, अपना घर संसार
खेल खिलौने ढूंढते, कहाँ हैं दोनों यार


© अखिलेश सोनीAkhilesh Soni