किताबें बिखर गई,तो भी सँभाल सकते हैं,

पुरानी किताबें,आज भी,
कोई न कोई ख़रीद ही लेता है,
पन्नों के साथ,कहा,लिखा और पढ़ा,
सब कुछ चला जाता है,
कुछ अच्छा,कुछ ख़राब-सब कुछ,
यादों को हमसे,कोई नहीं ख़रीद सकता,
ख़ुद को ही संजोए रखना पड़ता है इन्हें,
क्या बुरी,क्या अच्छी,क्या ख़राब और क्या सच्ची,
किताबें बिखर गई,तो भी सँभाल सकते हैं,
कोई ना कोई,मदद कर देता है,आ कर के,
यादों के ढेर सँभालने के लिए कोई नहीं आता,
ख़ुद को सँभाल कर,ना चाहते हुए,
इनकी हिफ़ाज़त करनी पड़ती है,
अच्छी होंगी तो भी अपनी, ना रहीं तो भी,
काश पुरानी किताबों सरीखे,दुख भरी यादों को,
बेच पाते,अपने ऊपर के बोझ को,
कम कर पाते, अच्छी यादों के संग, ज़िंदगी,
ख़ुश रह के बिताते, काश,
अच्छी यादों को संजोए,
ना बिकने वाली एक किताब बनाते,
हमेशा ख़ुश रहने का माहौल बनाते,
ना बेचने का आता कोई ख़्याल, 
आसान हो जाते,जीवन के कुछ सवाल,
पुरानी किताबें,आज भी, कोई ख़रीद ही लेता,
यादों को हमसे,कोई नहीं ख़रीद सकता,
वाक़ई कोई नहीं ख़रीद सकता ।


अजय