कोरोना वायरस को लेकर चीन में 80 से ज्यादा दवाओं व वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं।
चीन में भारत के आयुर्वेद की तरह उनकी अपनी पारम्परिक चिकित्सा पद्धति (हर्बल) है उस पर भी काफी ट्रायल चल रहे हैं। चाइना को कई साल पहले मलेरिया के लिए chinese पारम्परिक चिकित्सा पद्धति में एक नई दवा विकसित किये जाने पर नोबेल पुरस्कार भी मिला।
जब चाइना अपने हर्बल मेडिसिन पर आधुनिक रिसर्च करके नोबेल प् सकता है तो भारत वाले क्यों नहीं? फिर चिल्लायेंगे कि अमेरिका वालों ने पेटेंट करा लिया, चुरा लिया, इत्यादि।
भारत के आयुर्वेद संस्थानों में एक ख़ास जाति/वर्ग समूह का कब्ज़ा है जो केवल पुराणों की कहानियां सुना सुना कर मोटी तनख्वाहें ले रहे हैं।
भारतीय मूल के अमेरिकी और चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक महेंद्र सिंह जानना चाहते हैं कि करीब 6 साल पहले मोटे फंड के साथ आयुर्वेदिक शोध के लिए शुरू किया गया आयुष विभाग भी इस पर कोई ट्रायल कर रहा है क्या?
कहा जाता है कि आयुर्वेद के साइड इफेक्ट कम होते हैं। इस हिसाब से भी यह जानना अहम है। और अगर कुछ नहीं हो रहा है तो क्या कुछ लोगों के चरने खाने और राजनीतिक प्रोपेगेंडा के तहत इसकी घोषणा की गई थी?
Satyendra ps