इतिहास - ग्रंथों में कहाँ है चेरो - खरवारों का विशाल आदिवासी साम्राज्य ? 

1812 - 13 में फ्रांसिस बुकानन दक्षिण बिहार आया, स्मारकों को देखा , अभिलेखों को पढ़ा और दाँतों तले ऊँगली दबाते लिखा कि पूरे मगध तथा कीकट में कभी चेरो - खरवारों का विशाल आदिवासी साम्राज्य था । 
 
इतिहास - ग्रंथों में कहाँ है चेरो - खरवारों का विशाल आदिवासी साम्राज्य ? 


आपने तो चेरो - खरवारों को चेला , दास और नौकर बना रखा है । जंगल - पहाड़ में , दाने - दाने को मोहताज , दर - दर भटकते , वहीं चेरो - खरवार जिनके पुरखों के साम्राज्य की अमर - गाथा कैमूर की पहाड़ी पर जगह - जगह अंकित है ।


वे कभी रोहतासगढ़ किला के शासक थे । वही रोहतासगढ़ जिसका घेरा 28 मील तक फैला है और जिसमें कुल 83 दरवाजे हैं । 


फ्रांसिस बुकानन ने '' डिस्ट्रिक्ट आॅफ शाहाबाद - 1812 -13 ) में बड़े गर्व के साथ तुतला भवानी , ताराचंडी , फुलवारी में स्थित आदिवासी राजाओं के शिलालेखों का जिक्र किया है । 


फ्रांसिस बुकानन ने प्राचीन काल के आदिवासी राजा फुदी चंद्र की बखान में कई पन्ने खर्च किए हैं और फिर बांदूघाट अभिलेख को पढ़कर 11 आदिवासी राजाओं की सूची प्रस्तुत की है । एक से बढ़कर एक आदिवासी राजा - प्रताप धवल , विक्रम धवल से लेकर महानृपति उदय चंद्र तक ।


महानृपति जपिल प्रताप धवल ( 1162 ई.) ने तो अकेले 21 सालों तक शासन किया और झारखंड का जपला इसी प्रतापी राजा जपिल के नाम से मशहूर हुआ । 


किला चुनारगढ़ से लेकर गिद्धौर तक , बुद्ध काल से लेकर मध्यकाल तक , न जाने कितने इस क्षेत्र में आदिवासी साम्राज्य के निशान हैं - सासाराम , रोहतासगढ़ , शेरगढ़ , गुप्ताधाम , देव मार्कण्डेय , गड़हनीगढ़ ।


ये रहा रोहतासगढ़ का किला ।


RP Singh..