जो लोग,लेनिन और स्टालिन को हत्यारे समझते हैं,वे निश्चित रूप से वर्ग विन्यास में मनुष्य को नहीं सोचते हैं,या फिर उनके लिए ग़रीब-भूखे,दमित औरतें और अशिक्षा,तथा कुपोषण से मरते बच्चें सिर्फ,दया के पात्र हैं ; जरूर वे उन पूँजीपतियों और फरेबियों से कुछ ऊँचा दर्जा हासिल कर लेते हैं,जिनके हाथों में शोषण की चाबुकें हैं,वे लगभग परिवार की दादी-माजी की तरह होती हैं जो बहुओं को बच्चों को पीटने से रोकती भर हैं,लेकिन ऐसे उदारतावादी,अंतत: उन शोषकों
को आड़ देकर बचा ले जाते हैं !
#####
इन उदारतावादियों की भी दो श्रेणियाँ है- एक तो ऐसे हैं,जो कुछ ऐसा विचार रखते हैं कि किसी भी मनुष्य को-भोजन,आवास,शिक्षा,ईलाज और अवकाश की कोई कमी नहीं हो,और कोशिश करते हैं,सफल होते है,लेकिन उनका मार्क्स,लेनिन और स्टालिन,इत्यादि से सरोकार नहीं है,लेकिन प्रकारांतर में वे मार्क्स के मूलभूत बराबरी के सिद्धांतों को ही आगे बढ़ाते हैं- मार्क्स का बराबरी का मूलभूत सिद्धांत यही है,यह नहीं है कि सारे लोग बराबर हो जाएंगे- जब पाँचों अंगुलियाँ बराबर नहीं हैं,जब हर मनुष्य की प्रतिभा बराबर नहीं है,जब पद्धतियाँ बराबर नहीं हैं- अगर ऐसा होता तो कम्यून में सचिव से चपरासी तक के पद नहीं होते,जरूर इन्हें,मनुष्य होने का सम्मान मिलें,यह ज़रूरी है !
#####
दूसरे प्रकार के उदारवादी बहुत ख़तरनाक हैं,जो जाने-अनजानें,उन भेड़िए पूँजीपतियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं और ऐसे लोगों की चेतना को भी भटका कर उन्हें,शोषणों के पक्ष में ला खड़ा करते हैं-इस पद्धति में हर तरह के साम,दाम,दंड,भेद अपनाकर उस पूरे के पूरे भूखे और ग़रीब समुदाय को ग़लत पक्ष में ला खड़ा करते हैं-जिसमें कारक शक्ति धन,मद,भय और लालच होते हैं,और वो समुदाय,चूँकि,क्रांतिकारी कारकों से या तो परिचित नहीं होता,या सुविधभोगी मध्यवित्त के आसपास आ खड़ा होता है,इस बहकावे में तुरंत आ जाता है!
त्रिपुरा में,या रूस में ,या जहाँ भी हों- मार्क्स,लेनिन की मूर्तियाँ गिराना ऐसे कारकों का काम होता है,जबकि वे महज़ उन पूँजीवादी और फरेबी संस्कृति के वाहक भर होते हैं,वे किसी पोंछे हुए काग़ज़ से फेंके ही जाते हैं,यह वे भी जानते हैं !
#####
दुनियाँ में जब तक शोषण रहेगा,ग़रीबी रहेगी,औरतों और शिशुओं को दोयम दर्जें में गिना जाएगा,आप इन मूर्तियों को भले ही गिराते रहें,लेकिन इनकी ज़रूरतें और बढ़ती जाएगी; क्योंकि आपके पास ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है,जिसमें दया का मक्खन लगाए बग़ैर रोटी परोस सकें !
अंत में,आज तक की सबसे शक्तिशाली,षड़यंत्रकारी और हमलावर शक्तियों में भाजपा और मोदी हैं,जिनके ख़ूँख़ार चेहरे आने बाकी हैं- सो सावधान रहें ॥
प्रमोद बेड़िया