गाजीपुर में हुआ "पेरियार ललई सिंह यादव पुस्तकालय" का उद्घाटन......

एक अद्भुत प्रयास-

शोषित समाज को जगाने हेतु साहित्य एक महत्वपूर्ण साधन... .. 
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       साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है सोए हुये समाज को जगाने में क्योकि बिना चीजों को जाने हम कुछ भी परिवर्तनकारी कार्य नही कर सकते हैं और जनाने का काम साहित्य ही सबसे बेहतर तरीके से कर सकता है।
       यूपी के गाजीपुर जनपद के सैदपुर तहसील के सरायसुल्तान गांव में राष्ट्रीय विद्यार्थी चेतना परिषद के सलाहकार परिषद के सदस्य अरविंद यादव जी के संयोजकत्व में "पेरियार ललई सिंह यादव" पुस्तकालय की स्थापना की गई है।मुखराम यादव जी को पुस्तकालयाध्यक्ष बनाया गया है।
       सोशल मीडिया पर यह सूचना पाकर की यूपी में कहीं पेरियार ललई सिंह यादव जी के नाम और पुस्तकालय स्थापित हुवा है,मन अत्यंत प्रफुल्लित हुवा।साथी अरविंद यादव जी को इस नेक काम हेतु साधुवाद है कि उन्होंने अपने सोए समाज मे जागृति हेतु पुस्तकालय खोलकर अत्यंत ही नेक कार्य किया है।
       वैचारिक परिवर्तन में साहित्य का बहुत बड़ा योगदान है।हम जैसा साहित्य पढ़ते हैं,हमारा विचार व आचरण वैसा ही बनता है।हमे याद है अपना शुरुवाती दौर जब माँ जिंदा थीं तो हिन्दू धर्म के ग्रंथो को पढ़कर उनके अनुरूप कथा आदि उनके द्वारा कहलवाने से मैं भी खूब धार्मिक था।कोलकाता में रहते हुये कक्षा 08 तक पढ़ाई के वक्त मैं रामावली, दोहावली,विनय पत्रिका,रामचरित मानस आदि ग्रंथ गोविंद भवन,हावड़ा के पास से खरीद लाया था।गांव आने पर दसवीं में परीक्षा पास होने हेतु कक्षा नायक रहते हुये हमने स्कूल में ही सत्यनारायण का कथा कहलवाया था।मेरा वह दौर हिन्दू साहित्य पढ़ने का दौर था लेकिन जब मैं बीएससी करते वक्त पहली बार 1990 मे लखनऊ मुलायम सिंह यादव जी द्वारा आहूत रैली में गया और रामस्वरुप वर्मा जी की किताब"ब्राह्मण महिमा क्यो और कैसे" खरीदकर लाया व पढा तो रामचरित मानस के प्रति बनी सम्मान की भावना चकनाचूर हो गयी और फिर आस्था पर तर्क भारी पड़ने लगा।
       रामस्वरुप वर्मा जी की इस छोटी सी किताब "ब्राह्मण महिमा क्यो और कैसे" ने ही मेरे जैसे आस्तिक चंद्रभूषण को नास्तिक चंद्रभूषण बनने की तरफ अग्रसर किया।इस किताब के बाद मैंने गुईन प्रकाशन,अमीनाबाद,लखनऊ जा सच्ची रामायण,सच्ची रामायण की चाभी,गुलामगिरी, प्राचीन भारत मे गोमांस भक्षण आदि किताबे खरीदा।भीम प्रकाशन,जालंधर से बाली साहब की।लिखी किताबे मंगाया और धीरे-धीरे पूर्णतया तार्किक,वैज्ञानिक सोच अपनाने लगा।
       हमारा अपने लकीर के फकीर समाज को तभी चैतन्य कर सकेंगे जब उन्हें वैज्ञानिक विचारधारा से ओतप्रोत किताबे उपलब्ध करा सकेंगे।इसके लिए पुस्तकालयों के खोले जाने से बेहतर कोई उपाय न होगा जो साथी अरविंद यादव जी ने अपने जनपद गाजीपुर में ललई सिंह यादव जी के नाम पर खोलकर एक अद्भुत,सराहनीय व अनुकरणीय कार्य किया है।
       साथी अरविंद यादव जी ने कुर्सी,मेज,साहित्य,लोहे के चद्दरों से बना हुआ कमरा,उस पर छज्जा,विभिन्न तरह के पोस्टर्स आदि की व्यवस्था कर एक नजीर प्रस्तुत किया गई कि यदि ठान ले तो किसी सहयोग के बिना भी हम परिवर्तनकारी मुहिम को अंजाम दे सकते हैं।
        अपना खेत बेच छापखाना लगाकर पेरियार रामास्वामी नायकर जी की तमिल में लिखी ऐतिहासिक किताब "सच्ची रामायण" का हिंदी में अनुवाद कर पेरियार ललई सिंह यादव जी ने इसे हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मुकदमा लड़ के रिलीज करवाने का जो अद्वितीय कार्य किया है यह आने वाली तमाम पीढ़ियों को रोशनी देता रहेगा।इसी रोशनी की एक किरण साथी अरविंद यादव जी ने अपने क्षेत्र में फैलाने की कोशिश की है जिस हेतु वे साधुवाद के पात्र हैं।
-चंद्रभूषण सिंह यादव
कंट्रीब्यूटिंग एडिटर-"सोशलिस्ट फ़ैक्टर"/प्रधान संपादक-"यादव शक्ति"