अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस 


International Dance Day 
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अंतर्राष्ट्रीय नृत्य दिवस  प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस की शुरुआत 29 अप्रैल 1982 से हुई। यूनेस्को की सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संस्था की सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय नाच समिति ने 29 अप्रैल को नृत्य दिवस के रूप में स्थापित किया। एक महान् रिफॉर्मर जीन जार्ज नावेरे के जन्म की स्मृति में यह दिन अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।


ईसा पूर्व 10वीं से 7वीं शताब्दी के बीच रचित चीनी कविताओं के संकलन ‘द बुक ऑफ़ सोंग्स’ के प्राक्कथन में कहा गया है-


“भावनाएं द्रवित हो बनते शब्द
जब शब्द नहीं होते अभिव्यक्त
हम आहों से कुछ कहते हैं
आहें भी अक्षम हो जायें
तब गीतों का माध्यम चुनते हैं
गीत नहीं पूरे पड़ते, तो अनायास
हमारे हाथ नृत्य करने लगते हैं
पाँव थिरकने लगते हैं”


नृत्य एक सशक्त अभिव्यक्ति है जो पृथ्वी और आकाश से संवाद करती है। हमारी खुशी हमारे भय और हमारी आकांक्षाओं को व्यक्त करती है। नृत्य अमूर्त है फिर भी जन के मन के संज्ञान और बोध को परिलक्षित करता है। मनोदशाओं को और चरित्र को दर्शाता है। संसार की बहुत सी संस्कृतियों की तरह ताइवान के मूल निवासी वृत्त में नृत्य करते हैं। उनके पूर्वजों का विश्वास था कि बुरा और अशुभ वृत्त के बाहर ही रहेगा। हाथों की श्रंखला बनाकर वो एक दूसरे के स्नेह और जोश को महसूस करते हैं, आपस में बांटते हैं और सामूहिक लय पर गतिमान होते हैं। और नृत्य समानांतर रेखाओं के उस बिंदु पर होता है जहाँ रेखाएं एक-दूसरे से मिलती हुई प्रतीत होती हैं। गति और संचालन से भाव-भंगिमाओं का सृजन और ओझल होना एक ही पल में होता रहता है। नृत्य केवल उसी क्षणिक पल में अस्तित्व में आता है। यह बहुमूल्य है। यह जीवन का लक्षण है। आधुनिक युग में, भाव-भंगिमाओं की छवियाँ लाखों रूप ले लेती हैं। वो आकर्षक होती है। परन्तु ये नृत्य का स्थान नहीं ले सकतीं क्योंकि छवियाँ सांस नहीं लेती। नृत्य जीवन का उत्सव है।


नृत्य की उत्पत्ति
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कहा जाता है कि आज से 2000 वर्ष पूर्व त्रेतायुग में देवताओं की विनती पर ब्रह्माजी ने नृत्य वेद तैयार किया, तभी से नृत्य की उत्पत्ति संसार में मानी जाती है। इस नृत्य वेद में सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद व ऋग्वेद से कई चीजों को शामिल किया गया। जब नृत्य वेद की रचना पूरी हो गई, तब नृत्य करने का अभ्यास भरतमुनि के सौ पुत्रों ने किया।


 चित्र में  हम दोनों ( श्यामा गोंपाल  )


Shyama Rathi