मध्यवर्ग की फ़िक़्र
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और ये खाया पिया मध्यवर्ग यानी मेरा वर्ग क्या गरीब-गरीब,मज़दूर-मज़दूर कर रहा है, ये पूरी तरह मौज में है और ये लॉक डाउन 21 दिनों की #एडवेंचरस_पिकनिक है इसके लिये.., फेसबुक पर लिखते हुये भी ये घर मे क्या कर रहा है ये खुद जानता है..
ये एलीट क्लास का, सत्ता का हें-हें वर्ग है, ये वही है जो मरते हुये मरीज़ को पानी न दे, कि कहीं उसके कॅरोना न हो जाय। ज़्यादा समझना हो तो ब्रेष्ट का नाटक #अपवाद और नियम पढ़ लो..
गरीब और मज़दूर वर्ग लड़ेगा, भूखा होगा तो निकलेगा, लाठी खायेगा..गाली खायेगा..और ये ज़रूरी भी है कि वो इस सिस्टम..इस सत्ता से नफरत करना सीखे, इसे गालियां दे...जो अपनी योजना बनाते वक्त इसे कीड़ो-मकोड़ो की तरह भी काउंट नहीं करता ।
जिसे-जिसे इस पूंजीवादी दुनिया मे जीने का हक़ चाहिये..उसे लड़ना और मिटना सीखना ही होगा। ये कौन है जो सर्वहारा वर्ग को दया की भावना से कुचल देना चाहता है??.,जिन नेताओं..जिस सत्ता की लाठियां और भूख इसे मिलेगी उसके खिलाफ इसे खड़े होना सीखना होगा..,तभी इसकी मुक्ति भी है
क्योंकि कोई और नहीं है अब इसके लिये। कोई पार्टी नहीं,कोई संगठन आंदोलन अब नहीं, सब हार ही तो गये। विपक्ष ?? कहीं दिखा आपको ?? मंत्री अंताक्षरी खेल रही है ,नये मुख्यमंत्री बनने का जश्न हो रहा है..मार्च तक देश मे खिलवाड़ चल रहा था..उधर देश आर्थिक रूप से तबाह हो रहा था..
कोई आंदोलन..कोई प्रदर्शन दिखा आपको ? 19 मार्च तक सुरक्षा सामग्री के माल का निर्यात हो रहा था,आज एम्स तक के डॉक्टरों के पास मास्क, दस्ताने और सुरक्षित ड्रेस नहीं है। इस विपक्ष से एक इस्तीफा तक न मांगा गया, एक पुतला तक न फुंका।
ट्विटर और फेसबुक छाप पॉलिटिक्स से ये विपक्ष या आप खुद गरीबों-मज़दूरों को राहत दे पायेंगे ? ये आपका ही वर्ग है जो डॉक्टर्स से घर खाली करा रहा है, नार्थ ईस्ट की लड़कियों पर थूक रहा है, एयरलाइंस वालों को प्रताड़ित कर रहा है, इसके वाट्सअप ग्रुप्स में देखिये अभी भी कोरोना को लेकर साम्प्रदायिक घृणा और झूठ के परनाले बह रहे हैं।
सच कहूँ तो पुलिस ह्यूमन राइट्स के ग्राउंड पर बिल्कुल ट्रेंड नहीं है मगर वो इस मुश्किल दौर में गरीबों-मज़दूरों को मरने नहीं देगी ,ये डॉक्टर्स ये नर्स ये सफाई कर्मी..ये जब फील्ड में होंगे तो अपना वर्गीय चरित्र छोड़ कर मनुष्यता बचायेंगे.. गंभीर चुनौतियां हमें बदलती हैं..बचाती हैं। ये सभी लोग बेहद और बेहद मुश्किल हालात में इस वक़्त काम कर रहे हैं, इनसे गलतियां होंगी मगर ये मनुष्यता को मरने नहीं देंगे।
अगर सचमुच मदद करनी हो तो इस कदर नेट से सब कनेक्टेड हैं..हर शहर हर कस्बे को वार्ड और मुहल्लों में बांट कर ग्रुप बनवा कर अपने इर्द-गिर्द के वंचितों को ढूढिये। कुछ ठोस करिये..सिर्फ फरियाद नहीं। ये सरकार पूंजीपतियों की सरकार है.. ये क्यों सोचेगी..
सोचिये ! अपील के अलावा वो सबकुछ करिये जो ठोस है, मुझे भी बताइये मैं क्या करूँ...
21 दिन निरर्थक और अवसाद में नहीं काटने हैं, हँसिये भी ,रचनात्मक भी रहिये और अगर इस एजेंडे को ही स्थापित करा पाये कि स्वास्थ्य और शिक्षा पर सबका हक़ हो, इसका निजीकरण रोका जाए। बजट कम से कम 10% किया जाय, स्वास्थ्य के मुद्दे से जुड़े तथ्य भी अगर आप जन जन तक फैला पाये तो भी आपकी बहुत बड़ी जीत होगी।
बाकी यकीन रखिये...मज़दूर वर्ग हमारे आप जैसा हलुवा नहीं है..ये लड़ेगा और बचेगा..
ये जन मारे नहीं मरेगा...👍
दीपक कबीर
सामाजिक कार्यकर्ता