शाहीन_बाग_की_औरतें

दिन में थकती नहीं ,रात सोती नहीं


पीछे हटती नही, यूं ही रोती नही
नफरत बोती नहीं, झूठ ढोती नहीं
शांत होती नहीं,आपा खोती नहीं, 
साजिशों के मुकाबिल खड़ी बेधड़क
एक मुसलसल चमक नूर और आब की 
माँयें और बेटियां शाहीन बाग की ।


हौंसलों से भरी,बात कहती खरी
भेड़ियों की आंखों की बन किरकिरी
ना हटी ना डरीं ना झुकी ना गिरी 
सबके इंसाफ़ को मोर्चे पर डटी
शान और आन हिन्दोस्तां के परिवार की
दादियां नानियाँ शाहीन बाग की ।


न फूलों सी कली, ना ही नाजों पली
नफरतों में जली ,अंगारों पर चली 
शाहराहों  से ताउम्र वंचित रहीं 
मुक्ति की राह खुद ही तलाशने चलीं 
आँख नीची कराती गिध्द और बाज की
बुलबुलें कोयलें शाहीन बाग की ।


गुनगुनाती भी हैं गीत गाती भी है
नारों से आसमां को गुंजाती भी है 
आँधी पानी में खुद सम्भल जाती भी है
राह भूलों  को चराग दिखाती भी हैं ।
हौंसला बन गई हैं मेरे देश की 
खिलती कलियां चमन की शाहीन बाग की 


चेहरे पर ताब है,प्यारी मुस्कान है 
हैं जमी पर खड़ी पर एक विश्वास है 
पाने को अभी पूरा आकाश है
जीत के यकीन की मजबूत चट्टान हैं ।
मंजिलें ढूंढती है इंक़लाब की 
रौशनी की किरणे शाहीन बाग की ।
औरतें मेरे वतन की शाहीन बाग की 
● नीना शर्मा Neena Sharma