साझी विरासत पर संकट के बादल 


आप मुस्लिम पहचान से नफरत करते हैं तो फ़िराक़ गोरखपुरी से नफ़रत कैसे करेंगे? वह तो गोरखपुरिया रघुपति सहाय निकलेगा!


फ़र्ज़ कीजिए कि आपको ग़ालिब से नफ़रत है? फिर हिंदी के रहीम और रसखान का क्या करेंगे? आपको सलमान, शाहरुख़ और नवाजुद्दीन से दिक्कत है? फिर दिलीप कुमार क्या करेंगे? रामायण और महाभारत लिखने वाले राही मासूम रज़ा और 'ओ पालनहारे' लिखने वाले जावेद अख़्तर का क्या करेंगे? लगभग सारे अच्छे भजन कंपोज़ करने वाले साहिर, नौशाद और मोहम्मद रफ़ी का क्या करेंगे? यदि आपको गुलाम अली, नुसरत फतेह अली ख़ान, मेहदी हसन, तसव्वुर ख़ानम, फ़ैज़ और फ़राज़ से भी दिक्कत है, तो बड़े गुलाम अली खां, ग़ालिब, मीर, जौक़, ख़ुसरो, अल्ला रक्खां, बिस्मिल्ला खान, राशिद खान, शुजात खान, एआर रहमान का क्या करेंगे? एआर रहमान से नफरत करेंगे तो वह तो पैदाइशी हिंदू है? कैसे और किससे नफ़रत करोगे मियां? अगर आपको राहत से दिक्कत है तो मौजूदा हिंदुस्तानी संगीत के पितामह अमीर ख़ुसरो का क्या करेंगे? 


कुछ मूर्खों ने उर्दू को मुसलमानों की भाषा बना दिया है. पर क्या आप जानते हैं कि उर्दू हिंदुस्तान में पैदा हुई भाषा है? अगर आप उर्दू शायरी और साहित्य से नफरत करेंगे तो पंडित आनंद नारायण मुल्ला, मुंशी प्रेमचंद, महेंद्र सिंह बेदी, रघुपति सहाय फिराक, दुष्यंत कुमार, अमृता प्रीतम, नीरज आदि का क्या करेंगे? क्या आप मंटो को अपना अदीब नहीं मानेंगे?  


हिंदू-मुसलमानों की आपसी नफ़रत पूरे हिंदुस्तान की संस्कृति को ही संकट में डाल देगी.


हिंदुस्तानी संगीत, साहित्य, कला, विज्ञान और तमाम महान विरासत को आगे बढ़ाने वालों में मुस्लिमों की बहुतायत है, जो राम, कृष्ण और दुर्गा के भजन गाते हैं, साथ साथ उर्दू गजलें, कौव्वालियां गाकर संगीत परंपरा को आगे बढ़ाते रहे हैं. या ऐसे कहिए कि संस्कृति के मामले यहां पर हिंदू मुस्लिम दोनों मिलकर हिंदुस्तान बन गए हैं. 


तमाम सारी महान हस्तियों को हटा दो, फिर संस्कृति, भाषा और साहित्य के नाम पर बचेगा क्या? गोडसे और उसकी पिस्तौल? वही पढ़ाओगे अपने बच्चों को?  


उनकी बुद्धि और बेचारगी पर विचार कीजिए जो रविन्द्रनाथ टैगोर, मुंशी प्रेमचंद और ग़ालिब जैसी हस्तियों को कोर्स से हटाना चाहते हैं. उनके बारे में सोचिए जो एक सदी के लेखकों, कलाकारों को 'नक्सली' और 'देशद्रोही' घोषित करने पर आमादा हैं. वही लोग यह हिंदू मुस्लिम एजेंडा आपके दिमाग में भर रहे हैं जो आपको मानव बम में बदल रहा है. जो लोग हिंदुओं को मुसलमानों के विरुद्ध खड़ा करना चाहते हैं, आप उनके एजेंडे में क्यों फंस रहे हैं? 


हिंदू परंपरा एक महान परंपरा है, जिसका सदियों पुराना सनातन इतिहास है. हिंदू धर्म न मुसलमान शासकों के राज में मिटा, न कुटिल अंग्रेजों के राज में. एक हजार साल गुलामी से तो हिंदू मिटा नहीं, आज इस लोकतंत्र में जहां हिंदू बहुसंख्यक हैं, हिंदुओं का ही राज है, फिर क्यों कहा जा रहा है कि हिंदू खतरे में है? क्या बांटो और राज करो का एजेंडा आप नहीं समझते?
 
राम के नाम पर तालिबानी जानवर पैदा कर देने से हिंदुओं का कौन सा भला हो जाएगा? जिन लोगों में घृणा का स्तर ऐसा हो गया हो, वे दावा भी करें तो कौन से देश का निर्माण करेंगे? यह देश का निर्माण नहीं, एक सांस्कृतिक ध्वंस की शुरुआत है. 


इसी धरती की महान विरासत से नफरत करने वाले अपने को देशभक्त कहकर नारा लगाते हैं. पहले उनसे उनकी देशभक्ति और धर्म का प्रमाण मांगा जाना चाहिए जो भारत की असली संस्कृति और हिंदू धर्म को बदनाम कर रहे हैं. जिनको संस्कृति का स नहीं आता उन्होंने देश और संस्कृति का ठेका ले रखा है.


सिर्फ किसी के मुस्लिम नाम से नफरत मत कीजिए, वरना आपकी एक हजार साल की पूरी संस्कृति को दफन करना पड़ेगा और ऐसा करने में आप भी दफन हो जाएंगे. इसलिए हिंदू और मुसलमान, दोनों को अपनी अपनी अकल ठिकाने रखनी चाहिए. 


इस देश की आज़ाद मिट्टी में भगत सिंह के साथ अशफ़ाक़ का भी लहू मिला हुआ है. इसे आप अलग नहीं करते. शांति से रहो और महान बनना है तो महान सोचो. नफ़रत और हैवानियत महान नहीं बनाती, मिटा देती है.
By - Krishna Kant