कांग्रेस भी बड़ी मज़ेदार पार्टी है सब कांग्रेस में हैं लेकिन कांग्रेसी कोई नहीं है. कोई सिंधिया का आदमी था तो कोई कमलनाथ का तो कोई दिग्विजयसिंह का तो कोई पचौरी जी का तो कोई अरुण यादव का आदमी है . किस नेता के कितने आदमी है यही उसका जनाधार माना जाता है और इसी भीड़ के बल पर वह पार्टी में अपना वर्चस्व कायम करता है l इन आदमियों की वफादारी कांग्रेस के प्रति तब तक है जब तक इनका नेता कांग्रेस में है . इनका नेता धर्मनिरपेक्ष हुआ तो सभी बिना विचार किये धर्मनिरपेक्ष हो जाएंगे और अगर नेता साम्प्रदायिक हुआ तो ये भी रातों रात बदल जाते है l अपने नेता का सम्मान नहीं होने पर उनके आदमी बहुत दुखी होते है और उस काँग्रेस को भी ठुकरा देते हैं जिसने उन्हें नाम और पहचान दी l ये मंत्री बने या विधायक लेकिन किसी ना किसी के कोटे से बनते हैं अपनी प्रतिभा या सिद्धांत निष्ठा के बल पर नहीं l समाजवाद और राष्ट्रीयकरण की नीति पर ढोल बजाने वाले कब उदार आर्थिक नीतियों और निजीकरण के पक्ष में बैंड बजाने लगे कुछ कहा नहीं जा सकता l इन रीढ़ विहीन व विचार विहीन कांग्रेसियों की हो रही दुर्गति के लिए कोई और नहीं यह स्वयं जिम्मेदार हैं
गोपाल राठी