महिला दिवस


 सृष्टि की अनमोल धरोहर--
 नारी 
 नारी,विषम परिस्थितियों में भी
 कभी नहीं हारती
 हारती है वह
 बुने हुए जाल के
 कुचक्र में फंस कर
 उसे कुल की मर्यादा का
 रहता है ख़्याल
 प्रलोभनों के जाल बिछे हैं
 हर तरफ--
 जिससे अनजान है वह।


 हां,नारी सशक्त हो रही हैं 
 लेकिन,बहेलिए के
 छद्म रूप से
 अपरिचित है वह
 उसे नहीं पता
 बूटी- बूटी नोच कर
 वहशी भेड़िए उसकी देह को
 लाश में तब्दील कर देंगे।


 हे नारी जागो
 उठो 
 अब और देर मत करो
 इक्कीसवीं सदी की नारी हो तुम
 तुम भोग्या नहीं हो
 सहनशीलता तुम्हारी शोभा है
 परन्तु,
 हे वीरांगना
 अपने अंदर की शक्ति को पहचानो।


डाॅ.चित्रलेखा