मध्यप्रदेश -प्रशासकीय अराजकता की चुनौती


मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने मंत्रीमंडल में अनुभवहीन विधायकों को सीधे कैबिनेट मंत्री बना दिया है जिन्हें पूर्व में कोई प्रशासकीय अनुभव नहीं था।


इसका परिणाम यह हुआ है कि अधिकांश मंत्रियों के अपने विभाग के वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से अक्सर विवाद हो रहे हैं।


उदाहरण के रूप में वन मंत्री उमंग सिंघार और अपर मुख्यसचिव एपी श्रीवास्तव के बीच विवाद थम नहीं रहा है। इसके पहले परिवहन मंत्री गोविंदसिंह राजपूत का तत्कालीन प्रमुख सचिव मलय श्रीवास्तव, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल का तत्कालीन अपर मुख्यसचिव गौरी सिंह और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का प्रमुख सचिव नीलम शमी राव के साथ विवाद सामने आ चुके हैं।
मंत्रियों और वरिष्ठ प्रशासकीय अधिकारियों के बीच होने वाले विवादों के कारण प्रदेश में प्रशासकीय अराजकता की स्थिति निर्मित हो गयी है। अपर मुख्यसचिव गौरी सिंह ने तो स्वैछिक सेवानिवृत्ति ही ले ली। कई अधिकारी जो भाजपा सरकार के समय महत्वपूर्ण पदों पर थे, केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर चले गए हैं और कुछ प्रतिनियुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।


नौसिखिये मंत्री वरिष्ठ प्रशासकीय अधिकारियों से अपने मनमुताबिक कार्य कराना चाहते हैं जबकि अधिकारी ऐसे किसी काम में अपनी कलम फंसने नहीं देना चाहते, जिसके कारण बाद में उन्हें किसी जांच का सामना करना पड़े।


अधिकांश वरिष्ठ प्रशासकीय अधिकारियों की दुविधा यह भी है कि चार निर्दलीय और एक-एक सपा-बसपा विधायक के समर्थन पर टिकी कमलनाथ सरकार पता नहीं कब गिर जाए और प्रदेश में पुनः भाजपा सरकार आ जाये! तब उनके द्वारा आज लिये गये निर्णयों की समीक्षा होगी और वे लूप लाइन में डाल दिये जायेंगे, जैसे कि वर्तमान में शिवराजसिंह चौहान के कुछ प्रिय अधिकारी मुख्य धारा से बाहर होकर लूप लाइन में समय व्यतीत कर रहे हैं।


मुख्यमंत्री कमलनाथ एक साल में कई बार वरिष्ठ प्रशासकीय अधिकारियों के विभागों में फेरबदल कर चुके हैं। लेकिन प्रशासकीय अकर्मण्यता का निराकरण नहीं कर पाए हैं। कोई भी अधिकारी निश्चिन्त होकर कार्य नहीं कर पा रहा है क्योंकि उन्हें लगता है कि पता नहीं कब उनका विभाग पुनः बदल दिया जाए।


मुख्यमंत्री कमलनाथ जब तक इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं खोज लेते तब तक यह अराजकता प्रशासकीय मुख्यालय वल्लभ भवन की फिजा में तैरती ही रहेगी। अब वे अनुभवहीन कैबिनेट मंत्रियों को पुनः राज्य मंत्री बना कर उनकी पदावनति भी नहीं कर सकते और उन्हें कैबिनेट से बाहर भी नहीं कर सकते क्योंकि सभी मंत्री किसी न किसी क्षत्रप (दिग्विजयसिंह, ज्योतिरियादित्य सिंधिया, अजय सिंह, अरुण यादव और सुरेश पचौरी) के कोटे से मंत्री बने हैं। किसी भी मंत्री को यदि कैबिनेट से बाहर किया तो नया असंतोष उठ खड़ा होगा।
कई वरिष्ठ विधायक मंत्री न बनाये जाने के कारण नाराज चल रहे हैं। दिग्विजयसिंह के भाई लक्ष्मणसिंह तो कई बार शासकीय नीतियों और निर्णयों से परे जाकर भी अपना असंतोष सार्वजनिक रूप से प्रकट कर चुके हैं। इसके अलावा निर्दलीय विधायक भी अपने समर्थन की कीमत मंत्री पद के रूप में चाहते हैं।
मुख्यमंत्री इन मंत्रियों, वरिष्ठ प्रशासकीय अधिकारियों, असंतुष्ट वरिष्ठ विधायकों और निर्दलीय विधायकों को कितना साध पाते हैं उसी पर उनकी भी प्रशासकीय कौशल की परीक्षा होना है। यदि वे इन सभी को संतुष्ट कर पाते हैं तभी वे निर्विघ्न होकर सरकार चला पाएंगे।


अभी उन्हें एक परीक्षा और भी देना है। अगले कुछ दिनों में ही दो विधानसभा क्षेत्रों - श्योपुर और आगर में विधायकों के निधन से रिक्त हुए स्थानों पर उपचुनाव होना हैं। श्योपुर की सीट कांग्रेस के पास ही थी जबकि आगर भाजपा का गढ़ है। कमलनाथ यदि दोनों उपचुनाव जीत लेते हैं तब तो उनकी सरकार निश्चितरूप से निर्विघ्न हो जाएगी या फिर ज्योतिरियादित्य के प्रभावक्षेत्र की श्योपुर सीट तो कांग्रेस को हर हाल में जीतना ही होगी। अन्यथा भाजपा और अधिक आक्रमक हो जाएगी और कमलनाथ सरकार भी उसी अनुपात में अस्थिर हो जाएगी।


Praveen Malhotra


लेखक समाजवादी विचारक हैं