मदद के कौन से हाथ इनकी मदद करेंगे मालूम नहीं। 

ये बूढ़ी सी जान है, इंटरनेट पर इनकी तस्वीर वायरल हो रही है. कल मैंने भी इनसे बातचीत की थी, पूरी कहानी बताता हूँ। इनकी उम्र कोई 75 से 80 साल के बीच रही होगी। इनके साथ एक और बुजुर्ग महिला हैं, उनकी भी उम्र लगभग इतनी ही है. इनके साथ एक दुधमुंहा बच्चा भी है जिसे बारी बारी से कंधे पर ले जाया जा रहा है। तीन-चार नौजवान औरतें भी हैं। ये लोग नोएडा सेक्टर 16 में सड़कों पर रहते थे, जहां योगी जी का राज है। लॉकडाउन का आदेश आते ही, योगी की पुलिस ने इन्हें सड़कों पर से खदेड़ना शुरू कर दिया।


हालांकि प्रधानमंत्री के स्पीच में, और किसी भी सरकारी आदेश में ऐसा नहीं कहा गया था कि बेघरों, फुटपाथ, झुग्गियों और सड़कों पर रहने वालों को महानगरों से खदेड़ देना है। लेकिन मोदी जी के भाषण के खत्म होते ही देश भर के महानगरों में रहने वाले झुग्गी वासियों, फुटपाथ पर रहने वालों पर विपदा आ गई। पुलिस ने इन्हें फुटपाथ खाली करने के लिए पीटना शुरू कर दिया। ये कितनी बड़ी संवेदनहीनता थी कि जो लोग पहले से ही सड़कों, झुग्गियों, फुटपाथ पर रहते हैं, उन्हें लाठी मारकर यूपी पुलिस कहाँ ही भेजना चाहती थी? 


इस बूढ़ी औरत का परिवार सड़क पर भीख मांगकर अपना पेट भरता था, कुछ बच्चे मेट्रो स्टेशनों पर गुलाब बेचकर कुछ कुछ पैसे कमा लेते थे। लॉकडाउन का आदेश आते ही पुलिस ने इन्हें फुटपाथ खाली करने के लिए पीटना शुरू कर दिया, पुलिस की ज्यादतियों के बाद अपने बर्तन-कपड़े लेकर ये बुजुर्ग महिला और इसका परिवार अपने गांव के निकलने के लिए मजबूर हो गए।
इनका पैतृक गांव कोटा राजस्थान में है. कोटा पहुंचने के लिए कोई भी वाहन नहीं है, एक ही विकल्प है सिर्फ "पैदल चलना" और चलते ही जाना।


मुझे जिस जगह ये बुजुर्ग महिला मिलीं वह जगह ग्रेटर नोएडा वाला राजमार्ग था। हमने जैसे ही कहा कि हम पुलिस से मदद मांगते हैं, डरते हुए इनके परिवार की एक औरत बोली "नहीं, साहब पुलिस को फोन मत लगाना, पुलिस बहुत मारती है"


वैसे ही सड़कों पर गिने-चुने वाहन चल रहे हैं। उनमें से भी कोई भी इनके लिए अपना वाहन नहीं रोक रहा। इन्होंने अभी कोई 30-40 किमी का रास्ता ही तय किया है, कोटा पहुंचने के लिए इन्हें अभी करीब 700 किमी और चलना है। 


मदद के कौन से हाथ इनकी मदद करेंगे मालूम नहीं। 
लेकिन एक दूसरी कहानी और सुनता हूँ, कल की ही कहानी है, कल मेरी एक दोस्त दिल्ली के एक दूसरे छोर पर अपने फ्लैट पर फंसी हुई थी, वह एक अच्छे विश्वविद्यालय में पढ़ती हैं, आर्थिक रूप से भी सक्षम हैं, उनके पास राशन-पानी सब था। लेकिन अकेले रहना उसे बोर कर रहा था, डरा रहा था। उसने पुलिस से मदद मांगी, पुलिस स्वयं अपनी गाड़ी से उन्हें दिल्ली के दूसरे छोर पर उनके भाई के पास छोड़ कर आई। यहां पुलिस ने वही काम किया जो पुलिस से अपेक्षित था। लेकिन पुलिस से जब इन लोगों की मदद के लिए कहा जाता है तब पुलिस, राज्य, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सबकी एक ही प्रतिक्रिया क्यों होती है नहीं मालूम। जो पुलिस मेरी दोस्त को अपनी गाड़ी से उसके घर तक छोड़कर आती है। वही पुलिस इन गरीब प्रवासियों पर टूटकर पड़ती है। पुलिस जो नागरिकों के एक वर्ग के लिए इतनी तहजीब से पेश आती है, वहीं एक दूसरे वर्ग से सड़क भी खाली करने के लिए लाठियों से क्यों पीटती है, इस सवाल का जबाव मन को कचोटता है... इसका शायद एक ही जबाव है "गरीब होना इस मुल्क में ही नहीं, पूरी दुनिया में अपराध है...''         #Shyam Meera Singh