आज 'विश्व गौरैया दिवस' है। गौरैया सदा से हमारे जीवन और दिनचर्या के बेहद क़रीब रही है। घर-आंगन में एक आवश्यक और आत्मीय उपस्थिति जैसी। घर से बाहर तक, आंगन से सड़क तक और तमाम रिश्तों के बीच की खाली जगहों में हमारी नैसर्गिक मासूमियत का विस्तार है गौरैया। कहते हैं कि गौरैया से खूबसूरत और मुखर आंखें किसी भी पक्षी की नहीं होती। कभी गौरैया की मासूम आंखों में झांककर देखिए, आपको लगेगा कि आपके आंगन में छोटे-छोटे बच्चे फुदक रहे हैं। यह भरोसा जगाते हुए कि अगर देखने को दो गीली आंखें और महसूस करने को एक धड़कता हुआ दिल है तो बहुत सारी निर्ममता और क्रूरताओं के बीच भी पृथ्वी पर हर कहीं मौजूद है ममता, प्यार और भोलापन ! बेतरतीब शहरीकरण, औद्योगीकरण और संचार क्रांति के इस पागल दौर ने गौरैयों से हमारे घर छीन लिए हैं। गौरैया अब बहुत कम ही दिखती है। बड़े शहरों में तो बिल्कुल नहीं। छोटे कस्बों और गांवों में कभी-कभार। शायद इसीलिए घरों से वह नैसर्गिक संगीत भी ग़ायब होता जा रहा है जो हमारे अहसास की जड़ों को सींचा करता था कभी।
'विश्व गौरैया दिवस' पर आईए, हम गौरैया को बचाएं। पृथ्वी पर मासूमियत को बचाए !
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Dhruv gupt