मार्क्स ने 21 जून 1865 को अपनी प्रेमिका और बाद में पत्नी हुईं जेनी को लिखा था.खत

मार्क्स ने 21 जून 1865 को अपनी प्रेमिका और बाद में पत्नी हुईं जेनी को लिखा था.
मेनचेस्टर, 21 जून 1865



मेरी दिल अज़ीज़,


देखो, मैं तुम्हें फिर से खत लिख रहा हूँ. जानती हो क्यों? क्योंकि मैं तुमसे दूर हूँ और जब भी मैं तुमसे दूर होता हूँ तुम्हें अपने और भी करीब महसूस करता हूँ. तुम हर वक़्त मेरे जेहन में होती हो और मैं बिना तुम्हारे किसी भी प्रतिउत्तर के तुमसे कुछ न कुछ बातें करता रहता हूँ,


ये जो क्षणिक दूरियां होती हैं न प्रिय, ये बहुत सुन्दर होती हैं. लगातार साथ रहते-रहते हम एक-दूसरे में, एक-दूसरे की बातों में, आदतों में इस कदर इकसार होने लगते हैं कि उसमें से कुछ भी अलग से देखा जा सकना संभव नहीं रहता. फिर छोटी छोटी सी बातें, आदतें बड़ा रूप लेने लगती हैं, चिडचिड़ाहट भरने लगती हैं. लेकिन दूर जाते ही वो सब एक पल में कहीं दूर हो जाता है, किसी करिश्मे की तरह दूरियां प्यार की परवरिश करती हैं ठीक वैसे ही जैसे सूरज और बारिश करती है नन्हे पौधों की. ओ मेरी प्रिय, इन दिनों मेरे साथ प्यार का यही करिश्मा घट रहा है. तुम्हारी परछाईयां मेरे आसपास रहती हैं, मेरे ख्वाब तुम्हारी खुशबू से सजे होते हैं. मैं जानता हूँ कि इन दूरियों ने मेरे प्यार को किस तरह संजोया है, संवारा है.


जिस पल मैं तुमसे दूर होता हूँ मेरी प्रिय, मैं अपने भीतर प्रेम की शिद्दत को फिर से महसूस करता हूँ, मुझे महसूस होता है कि मैं कुछ हूँ. ये जो पढ़ना-लिखना है, जानना है, आधुनिक होना है ये सब हमारे भीतर के संशयों को उजागर करता है, तार्किक बनाता है लेकिन इन सबका प्यार से कोई लेना-देना नहीं. तुम्हारा प्यार मुझे मेरा होना बताता है, मैं अपना होना महसूस कर पाता हूँ तुम्हारे प्यार में.


जेनी
इस दुनिया में बहुत सारी स्त्रियाँ हैं, बहुत खूबसूरत स्त्रियाँ हैं लेकिन वो स्त्री सिर्फ तुम ही हो जिसके चेहरे में मैं खुद को देख पाता हूँ. जिसकी एक एक सांस, त्वचा की एक एक झुर्री तुम्हारे प्यार की तस्दीक करती है, जो मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत याद है. यहाँ तक कि मेरी तमाम तकलीफों और जीवन में होने वाले तमाम अपूरणीय नुकसान भी उन मीठी यादों के साये में कम लगने लगते हैं.


मैं तुम्हारी उन प्रेमिल अभिव्यक्तियों को याद करता हूँ, तुम्हारे चेहरे को चूमते हुए अपने जीवन की तमाम तकलीफों को, दर्द को भूल जाता हूँ…


विदा, मेरी प्रिय. तुम्हें और बच्चों को बहुत सारा प्यार और चुम्बन…


तुम्हारा


-मार्क्स