काशीराम भी भारतीय जनता पार्टी से कम गुनाहगार नहीं हैं।

""शुरू शुरू में श्री काशीराम बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर तक का नाम लेना तौहीन समझते थे। जगजीवन राम का तो उन्होंने जिंदगी में नाम नहीं लिया, तारीफ करना तो दूर की बात है। बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर के बारे में उन्होंने यहां तक टिप्पणी कर दी थी कि बाबा साहेब मात्र लाइब्रेरी के विद्वान थे। यह बात सम्भवतः उन्होंने खुद को बाबा साहेब से ऊपर सिद्ध करने के लिए कही थी। उनको यह भी ज्ञान नहीं रहा कि राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस के दौरान लंदन में जैसा मर्मस्पर्शी वर्णन दलितों के बारे में आजादी के पूर्व बाबा साहेब ने प्रस्तुत किया था, वह लाइब्रेरी से बाहर न देखने वाले के लिए संभव ही नहीं होता।
श्री काशीराम को बाबा साहेब की प्रतिभा,उनके उपकारएवं संगठन क्षमता समझ मे नहीं आई परन्तु श्री वीपी सिंह ने यह समझा। उन्होंने बगैर किसी मांग के ही बाबा साहेब को भारत रत्न की सर्वोच्च उपाधि से सम्मानित किया और उनकी प्रतिमा लोकसभा के सेंट्रल हाल में लगाया। इतना ही नहीं, बाबा साहेब भीम राव अम्बेडकर जन्म शताब्दी समारोह की स्थापना की गई और उनके जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया। दलितों के दबाव से विवश होकर श्री काशीराम भले ही बाबा साहेब की बात करें, वास्तव में इनका कोई लगाव नहीं है।
श्री काशीराम भी भारतीय जनता पार्टी से कम गुनाहगार नहीं हैं।आरक्षण के नाम पर चट्टान जैसे अडिग रहने वाले श्री वीपी सिंह को समर्थन न देकर दलितों एवं पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ भारी विश्वासघात किया,जिसे सम्भवतः देश की जनता भली भांति परखेगी।"
आज से लगभग ढाई हजार साल पहले राजपरिवार से सम्बंधित गौतम बुद्ध ने दलितों के हितों और सम्मान की बात की। आज ढाई हजार साल बाद राजघराने के परिवार के बहादुर नौनिहाल ने इस देश में पुनः वही आवाज उठाई। वह आज जाति से ऊपर उठ गए हैं, जैसे कि उन्होंने महात्मा बुद्ध के आदर्शों को अपने हृदय में आत्मसात कर लिया है। 
काशीराम अगर डॉ बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को मानते हैं तो उन्हें विवशता से राजपरिवार और क्षत्रिय वंश के गौतम बुद्ध को मानना पड़ता है। मामला जाति का नहीं विचारों का है। उन्हें श्री वीपी सिंह के बारे में भी "ठाकुर बाभन बनिया छोड़, बाकी सब हैं डीएस4" की भाषा में अपवादस्वरूप उन्हें बदलाव करना चाहिए था। इसका भी जवाब दलितों को को ढूंढना चाहिए।""


सत्येंद्र पी एस