जिंदा आदमी जो एक बेहतर जीवन मांग रहा है, वह खुद को आदमी साबित करने में फंसा रहेगा।CAA/NPR/NRC को लेकर

झारखंड के गांवों में सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला CAA/NPR/NRC को लेकर लोगों से बातचीत कर रहीं हैं। महिलाओं के उठे हाथ बतला रहे हैं कि उनके पास जन्म प्रमाण-पत्र नहीं हैं। वे अपनी ही जन्म तिथि ठीक-ठीक जानती नहीं, अपने माता-पिता की जन्म तिथि क्या बताएंगी?
अहम बात यह भी है कि आदिवासी जो किसी संगठित धर्म के दायरे में नहीं आते, उनकी नागरिकता संदिग्ध होने पर वे CAA के तहत संगठित धर्मों का नाम लेकर वापस नागरिकता भी नहीं पा सकते। उन पर दबाव रहेगा कि वे खुद को संगठित धर्म के दायरे में लाएं और दोयम दर्जे की नागरिकता स्वीकार करें या डिटेंशन सेंटर जाएं।
इस दौरान विस्थापित आदिवासी, मजदूर, स्त्रियां, जंगल पहाड़ों में रहने वाले लोग जो ज़मीन के पट्टे के लिए जूझ रहे हैं, जो भाषाएं नहीं समझते, सारे के सारे लोगों की मुश्किलें बढ़ेंगी। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, खेती, सिंचाई दुरुस्त करने, पलायन, विस्थापन, मानव तस्करी रोकने के लिए आदिवासी इलाकों में अभी भी बहुत रचनात्मक काम और पहल की जरूरत है लेकिन करोड़ों रुपए ख़र्च कर अधिकारी, कर्मचारी, सभी महीनों NPR करने में लगे रहेंगे।
जिंदा आदमी जो एक बेहतर जीवन मांग रहा है, वह खुद को आदमी साबित करने में फंसा रहेगा।