अम्मा हैं, नानी हैं, सुविधा है, मानी हैं,
चाची हैं, भाभी हैं, आई हैं, संध्या हैं,
शबरी से शुभू तक जीवन की परिधि हैं,
बब्बन से खुशबू तक स्नेहसिक्त त्रिज्यायें हैं,
छोटी सी गार्गी हैं, थोड़ी सी वर्षा हैं,
बृजेश हैं, शोभा हैं, सृष्टि और साक्षी है नेहसिक्त नेहा हैं,
राखी हैं, रंजू हैं, बीनू हैं, मीनू हैं,
वेदलता की छाया सी गरिमामय सुमि है,
मीठी सी सुवि है जो हर्षिता सुहानी है,
गोद ली हुयी गॉड मदर मुन्नीबाई की मनमानी है
निशा जी की कद्रदानी है ; शेफाली की निगहबानी है ।
पापा की दादी लोरियां सुना गयी हैं -
ढेर सी बुआयें मुहावरे सिखा गयी हैं
मेघा हैं, खुशियां है - नन्ही इरीना है ;
जितनी तदबीरें है उतनी जसवीरें हैं
मावस से ज्यादा हैं पूर्णिमा उजाले की
दुर्दिन से लड़ने की आशा जगाती हैं ,हौंसला बढ़ाती हैं,
सिग्मा के मानों से ब्रह्माण्ड नपवाती हैं,
श्रुति और स्मृति में सभ्यता सजाती हैं,
प्यार से सिखाती हैं आदमी बनाती है।
और भी अनेकों है ;
कुछ सायास विस्मृति में लुप्त हुयी रचना हैं,
कुछ गुमी नोटबुक में दर्ज अधूरी कविता हैं,
काफिया बिगड़ने से आधी रही गज़लें हैं,
अक्षर बिगड़ने से व्यर्थ हुए शब्दचित्र
भाव न संवरने से अधलिखी सी नज़्में हैं,
सांस भर अन्या है आस भर अनन्या हैं,
अधपर में छूट गयी कथाये -कहानियां हैं,
भूल गयी आयत हैं - बिसर गयी ऋचायें हैं ।
इन्ही ने सिखाया है किस तरह से जीना है -
सीखे पर अमल कराने का मुख़्तियारनामा लिए सन्नद्ध
आठों पहर नीना है !!
ये फ़क़त डीएनए हैं , रक्त और मज्जा है ; कोशिकाएं अनगिनत हैं ;
इन सबके मिलने से बन सका जो वो हम हैं ;
जो न बना ठीक तरह, उसकी वजह खुद हम हैं !!
इन सबका बस एक दिन ??
फिर बाकी सब दिन किसके ??
बादल सरोज